“हाय दीदी, इतनी जल्दी क्यों छोड़ कर चली गईं,” अनुभा रोतेरोते कह रही थी.
छोटी बहन सुगंधा को तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. अपने हाथों से अधीरा को छूछू कर देख रही थी,”दीदी, उठो… देखो हम आ गए. अब तो उठ जाओ. देखो, हम अचानक ही आ गए. वह भी बिना तुम्हारे बुलावे के. तुम हर बार हमें बुलाती थीं ना कि आ जाओ, आ जाओ… दीदी, अब उठ भी जाओ ना, इतनी भी क्या नाराजगी…”
पर अधीरा तो इन सब से दूर जा चुकी थी.
बड़ी सी कोठी के शानदार ड्राइंगरूम के बीच में अधीरा आज शांत लेटी थी. हमेशा की तरह हंसतीखेलती, मुसकराती, अपने घर को सजातीसंवारती अधीरा अब कभी नहीं दिखेगी किसी को.
मनोज ड्राइंगरूम के दरवाजे पर काफी दूरी पर बैठा था. वहां से उसे अधीरा का चेहरा नहीं दिख रहा था.दोनों बहनों के रूदन से माहौल और भी गमगीन हो गया. पास बैठीं परिवार की अन्य औरतें और अधीरा की सहेलियां भी तेज स्वर में रोने लगीं.
अनुभा अपनी बड़ी बहन के पास बैठ कर सुबक रही थी और आग भरी नजरों से मनोज को ही घूर रही थी.
एक पल को दोनों की नजरें मिल गईं,’ओह, इतनी नफरत, घृणा…’मनोज की नजरें झुक गईं.
‘हां…हां…मैं हूं ही इस लायक. मैं ने कब उसे चैन से रहने दिया.’
उस दूधवाले प्रकरण के बाद कुछ साल सब ठीक रहा. दूधवाले को हटा दिया गया. अब दूध एक बूढ़ा नौकर डेरी से लाने लगा था. अधीरा भी धीरेधीरे सब भूल गई, ऐसा लगता था पर अविश्वास की फांस उस के दिल की गहराइयों तक समा चुकी थी.
6 साल बाद एक रोज सोमवार को-
‘अरे मेरी बात सुनो तो. मैं नहीं आ पाऊंगी. मेरा आ पाना संभव नहीं है,’अधीरा किसी से बात कर रही थी.
मनोज को अंदर आते देख उस ने झट से फोन रख दिया. इतनी बात तो मनोज ने सुन ही ली थी और शक का फन उफान पर था…
‘किस का फोन था?’
‘क…क…किसी का नहीं. मेरी एक सहेली अंजलि का था. घर पर बुला रही थी मुझे. आप के लिए नाश्ता लगा दूं क्या?’
पर बात आईगई नहीं हुई.
उसी दिन मनोज ने चुपचाप कौल डिटेल निकलवा ली. ललित नाम के किसी शख्स ने 2 बार अधीरा को फोन किया था.
‘मेरी जानकारी के बगैर कोई गैरमर्द मेरी बीवी को फोन कर रहा है और मेरी बीवी मुझ से छिपा रही है. जरूर उस का कोई पुराना आशिक होगा,’अब मनोज वही सोच रहा था जो वह सोचना चाहता था.
अगले दिन-
‘कौन है यह ललित और क्यों उस ने तुम्हें फोन किया? कहां बुला रहा था मिलने के लिए?’
सवालों की बौछार सुनते ही अधीरा हड़बड़ा गई. उस का चेहरा सफेद पड़ गया.
‘बोलतीं क्यों नहीं.’
‘वह मेरे साथ कालेज में पढ़ता था .शादी के 10 वर्षों बाद अब उस के घर में बेटी हुई है. उस के नामकरण में बुला रहा था मुझे. उस की पत्नी अंजलि भी मेरी अच्छी दोस्त है पर कई वर्षों से मेरा मिलना नहीं हुआ उन दोनों से,’अधीरा ने स्पष्टीकरण देने की कोशिश की.
पर अविश्वास में अंधा हो कर मनोज यह सब सुननेमानने को तैयार नहीं था.
“अब किस का इंतजार है? मृतदेह को इतने घंटों तक घर में रखना ठीक नहीं हैं,” कोई बोल रहा था.
आवाज सुन कर मनोज अपने वर्तमान में लौट आया…
‘काश, सबकुछ वहीं रुक गया होता. काश, उस ने अपने दिल के साथ कुछ दिमाग की भी सुन ली होती. मगर
ऐसा हो ना सका,’ वह मन ही मन सोच रहा था.
अजीब सा विरोधाभास था. अपने नाम के विपरीत अधीरा में धैर्य कूटकूट कर भरा था. मनोज के बेमतलब के इल्जामों को सुन कर कुछ दिन तो वह खूब रोती थी, कुछ माह उदास रहती थी पर अपने बेटों का मुख देख कर सबकुछ भुला देती थी.
रोने की आवाजें अब तेज हो चली हैं… 1-1 सरकते पल में जैसे सांसों में धुंआ भरता महसूस हो, जैसे नब्ज डूबती ही जा रही हो… हर गुजरता लम्हा उन्हें मिलाने के बजाय दूर करने के लिए तैयार खड़ा था.
दोनों बेटे और अनुभा, सुगंध के पति और उन के बेटे अधीरा का पार्थिव शरीर को उठा कर बांस की बनी सेज पर लिटा रहे थे. बांस पर सूखी पुआल भी पड़ी थी, उस पर सफेद चादर बिछा दी गई.
“उस पर मत लिटाओ मेरी अधीरा को. उस के कोमल बदन पर खरोंचें लग जाएंगी,” मनोज मानो तड़प उठा.
मनोज आगे बढ़ा पर दोनों बेटों की अंगार बनी आंखों को देख कर पांव जमीन पर चिपक कर रह गए. इस के आगे मनोज कुछ कह ही नहीं सका. उस के कदम भी लड़खड़ा कर रहे थे.
भाभी अपराजिता ने उसे थाम लिया,”इन बातों से अब कोई फायदा नहीं भैया. जब तुम जीतेजी उस के मानसम्मान की रक्षा ना कर सके तो अब मृतदेह से मोह दिखाने से क्या फायदा? चुपचाप किसी कोने में खड़े रहो, नहीं तो अपने दोनों बेटों का गुस्सा तो तुम्हें पता ही है…”
लेखिका- यामिनी नयन गुप्ता