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धूपबत्ती का धुआं गोल आकार में उड़ता ऊपर की ओर जा रहा था. शायद छत तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था. पर इतनी ऊंचाई तक पहुंचने से पहले ही धूपबत्ती के सफेद गोलाकार धुएं के कण सर्पिलाकार होते हुए तितरबितर हो जाते थे.

चंदन धूपबत्ती की खुशबू मनोज के नथुनों में जा रही थी और उस की सांस जैसे रुकी जा रही थी.

सामने अधीरा की मृत शरीर के पास दीपक के साथ एक मोटी सी धूपबत्ती भी जला कर रखी गई थी, पर मनोज चाह कर भी चिरनिंद्रा में लीन अपनी बीवी के मुख को देख नहीं पा रहा था. नजरें झुकी हुई थीं. बस, कभीकभी नजर उठा कर धुंए के गोल छल्लों को देख लेता था.

बीवी अधीरा के संग 30 वर्षों का सफर आज यहां खत्म हुआ पर आज कहां? वह तो 20 वर्ष पहले उस दिन ही खत्म हो गया था जब मनोज ने पहली बार अधीरा के चरित्र पर लांक्षन लगाया था .

‘वह दूधवाला घर पर क्यों आया था अपनी बीवी के साथ?’ गुस्से में अंधा  ही तो हो गया था मनोज.

अधीरा घबराते हुए बोली थी,’क…क… कब? मैं तो कल ही आई हूं अपने मायके से. मुझे क्या पता?’

मनोज गुस्से से बोला,’तेरे पीछे  दूधवाला आया था अपनी बीबी के साथ यहां, उसे यह दिखाने के लिए कि तेरा और उस का कोई अनैतिक संबंध नहीं है.’

अधीरा मानों आसमान से जमीन पर आ गिरी.

‘यह आप क्या कह रहे हैं… मैं और दूधवाले के साथ…? छी…छी… आप ने ऐसा सोचा भी कैसे?’

पर मनोज कहां सुनने को तैयार था. 30 साला अधीरा का मुंह जैसे अपमान से लाल पड़ गया.

मनोज और अधीरा की अरैंज्ड मैरिज हुई थी. मनोज औसत रंगरूप का युवक था और अधीरा गोरी, लंबी पढ़ीलिखी, आत्मविश्वासी, घरेलू और खुशमिजाज युवती थी.

पर मनोज उसे बहुत प्रेम करने के साथसाथ उसे ले कर बहुत पजैसिव था. कोई भी एक नजर अधीरा को देख ले तो उसे कतई बरदाश्त नहीं था.

दूधवाला जब अपनी बीवी के साथ उस की नई कोठी पर आया तो उस दिन सोमवार का था. अधीरा को अचानक अपने दोनों बेटे सजल और सारांश के साथ मायके जाना पड़ गया था. साप्ताहिक अवकाश के चलते मनोज अपने इलेक्ट्रौनिक्स शोरूम की दुकान नहीं गया था और घर पर ही था. बस, शक का कीड़ा उस के मन में कुंडली जमा कर बैठ गया और आज अधीरा को डसने लगा.

अधीरा बोली,’दूधवाला गांव से रोज बाइक से शहर आता है तो अपनी बीवी को ले आया होगा, उस को  सामान दिलाने या डाक्टर को दिखाने. कितने ही काम होते हैं गांव वालों को शहर में.’

पर मनोज कुछ भी सुनने तो तैयार नहीं था.

अधीरा के खिलते चेहरे पे जैसे पतझड़ आ गया. आवेश में चेहरा गुस्से से तमतमा आया पर मां की वह सीख कि गुस्से में पति कुछ भी कहे तो उस समय चुप रह जाना. यह अविश्वास का दीमक गृहस्थी की जड़ों को खोखला कर देता है, याद कर के चुप रह गई.

8 और 10 वर्षीय सजल और सारांश इस सब से बेखबर थे. पर मां की सूनीसूनी, रोती आंखें, मुरझाया चेहरा  बहुत कुछ कहना चाहता था मगर मासूम बच्चे उन्हें पढ़ ही नहीं पाते थे.

एक आम युवती की तरह उस ने बस प्रेमपूर्ण जीवन की ही कामना की थी. जिन लम्हों की तमन्ना उस ने तमाम उम्र की, वह लम्हें मिले तो पर इतने कम मिले कि उन का मिलना, न मिलने के दुख से दोगुना हो उठा.

तेज रोने की आवाज से मनोज जैसे अतीत से निकल कर वर्तमान में लौट आया. अधीरा की दोनों छोटी बहनें अनुभा और सुगंधा भी आ गई थीं और लाल साड़ी में लिपटीलेटी अधीरा को देख कर उन के आसुओं का बांध टूट पड़ा था.

लेखिका- यामिनी नयन गुप्ता

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