कल से मेरे पैर धरती पर नहीं पढ़ रहे थे. रात को मारे उत्तेजना के नींद नहीं आई थी. इस पल की कितनी प्रतीक्षा थी मुझे. रात जब खाने के बाद रितिक मेरे कमरे में आया तो मुझे लगा शायद उसे कुछ चाहिए. मेरे पूछने पर उस ने अपनी दोनों बांहें मेरे गले में डाल दीं, "नहीं मां, मुझे कुछ बताना था आप को."

शर्म से गुलाबी हो आए उस के गोरे मुखड़े को देख कर मेरे चेहरे पर प्यार भरी मुसकान तैर गई.

"तो तुझे मेरी बहू मिल गई?"
"अगर आप उसे स्वीकार करेंगी तो..."

"तुम जानते हो, तुम्हारी खुशी से बढ़ कर मेरे लिए और कुछ भी नहीं. कौन है वह, जिस ने मेरे बेटे के दिल की घंटी बजाई है?" बेटे के गाल पर प्यार की चपत लगाते हुए मैं ने पूछा.

"मां, प्रिया नाम है उस का. मेरे साथ एमबीए किया है उस ने. हम ढाई साल से एकदूसरे को जानते हैं और पसंद करते हैं. उस को भी अपने शहर में अच्छी नौकरी मिल गई है."

"कब मिलवाओगे?" मेरा सीधा प्रश्न था.

"मां, कल सुबह नाश्ते पर बुला लेता हूं."

"बुला नहीं लेता हूं. जा कर ले आना उसे. अब जा सो जाओ."

पूरी रात मैं करवटें बदलती रही. सुबह 4 बजे ही मैं ने बिस्तर छोड़ दिया और रसोई में घुस गई. मन करता यह भी बना लूं, वह भी बना लूं. सुबह 7 बजे तक मेरी रसोई तरहतरह के पकवानों से महकने लगी.

"मां, क्याक्या बना लिया आप ने? पूरा घर महक रहा है. आप क्या रात भर बनाती रही हैं?" आश्चर्य और प्यार दोनों रितिक के स्वर में था.

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