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अपने पश्चाताप की पोथी बांच रही थी निकिता कि तभी मोबाइल की घंटी बज उठी, ओह, बौस का फोन है, अपनेआप को संयत करने का हर संभव प्रयास करते हुए बोली, “गुड आफ्टरनून सर.”

“गुड नून, हाऊ आर यू निकिता?”

आंखों की नमी को पीछे धकेलते हुए वह बोली, “आई एम फाइन सर.”

“सौरी निकिता, आई नो, टूडे इज संडे, बट इट्स अर्जैंट, प्लीज, सैंड सम डौक्यूमैंट्स इमिडिएटली.”

“ओके सर. आई विल सैंड इमिडिएटली,” निकिता गालों को सहलाते हुए बोली. उस के गाल बहुत जलन कर रहे थे.

फोन रखते ही निकिता ने एक बार खुद को आईने में देखा तो पाया, गालों पर फजल के हस्ताक्षर साफसाफ दिखाई दे रहे थे. शुक्र है, आज संडे है, औफिस नहीं जाना, वरना क्या जवाब देती लोगों को कि यह उसी फजल के प्यार भरे हस्ताक्षर हैं जिन के लिए उस ने अपनी जिंदगी की किताब से उन प्यार भरे पन्नों को फाड़ कर फेंक दिया, जिस पर ममता और दुलार की कई गाथाएं लिखी थीं.

उफ, जिंदगी भी क्या शै है, इस तरह बेतहाशा भाग रही है कि इतमीनान से बैठ कर अपना दुख मनाने का वक्त भी नहीं देती, आंसू पोंछ कर मुंह पर पानी के छींटे डाल वह पुनः ड्राइंगरूम में आ गई, किंतु जैसे भी टेबल के सामने आई, फिर से सिर पकड़ कर बैठ गई, लैपटौप... वह तो फजल की मेहरबानी का शिकार हो गया, जाने किस जन्म की दुश्मनी निभा रहा है, किस तरह मेरी जिंदगी बदलहाल किए हुए है, क्या हो अब...? बौस को प्रौमिस कर चुकी हूं, अर्जैंट है, उन्हें बता भी नहीं सकती यह हालात, किंकर्त्तव्यविमूढ़ सी बैठी रही कुछ देर निकिता. फिर वह उठ कर बैडरूम में गई और फजल का लैपटौप ले आई.

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