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“बेटी, वह जमाना और था,” किंतु मां की हर समझाइश को उन की इस बुद्धिमान बेटी ने सिरे से खारिज कर दिया. एजुकेटेड, फौरवर्ड और बोल्ड होने का चश्मा जो लगा रखा था आंखों पर.

मां ने रोधो कर चुप्पी साध ली, मगर पिताजी… उन्होंने तो उसे जहर खाने तक की धमकी दे दी. यह वही पिताजी थे, जिन के बगैर निकिता को एक पल भी चैन नहीं था, जिन की उंगली थामे उस ने चलना सीखा था. यह वही पिताजी थे, जिन्होंने उसे हमेशा भाई के बराबरी के दर्जे पर रखा, उस की जायजनाजायज हर जरूरत को मां से पंगा ले कर पूरा किया. मगर, आज उन्हीं पिताजी को इस फजल के लिए…

ओह, कितनी अंधी हो गई थी वह इस नामुराद के मोह में कि अपने जन्मदाता के जीवन को भी दांव पर लगा दिया. नहीं मानी जिद्दी जो थी, शायद उस की वजह से वह घर पिता की छत्रछाया खो देता, मगर भला हो उस भाई का, जिस ने गुस्से में आ कर कहा, “पिताजी, मरे तो वह मरे, आप क्यों मरेंगे. जाती है तो जाने दो अपनी बला से, उस की अपनी जिंदगी है. बस, अपनी जिंदगी से हमारे परिवार का नाम और पहचान सबकुछ पोंछ कर जाए यहां से. हमें उस से अब कोई मतलब नहीं रखना.”

और निकिता तोड़ आई वह सारे रिश्ते, जिस की छांव में कभी यह नन्हा सा पौधा परवान चढ़ा था.

बाथरूम में मुंह धोते हुए निकिता ने आईने में अपना चेहरा देखा. अपनी ही शक्ल से नफरत होने लगी थी उसे.

निकिता लौटी तो लैपटौप को जमीन पर गिरा पाया, टूटे हुए लैपटौप को उठा कर टेबल पर यों रखा, मानो अपनी जिंदगी के टूटे हुए अरमानों को फिर एक बार जोड़ कर रख रही हो. उसे और भी कोफ्त हुई जब उस ने देखा कि उस का लैपटौप तोड़ कर फजल के चेहरे पर तनिक भी पश्चाताप का भाव नहीं है, उलटे वह मुसकराते हुए कांटे से शरीफी के एकएक अंश को बड़े इतमीनान से निकाल कर मुंह में रखता, शैतानों की तरह उसे मुंह में घुमाता और फू… कर के बीज को वहीं थूक देता.

“जानवर हो तुम… जानवर, इनसानों सा कोई गुण नहीं तुम में. मैं ही बेवकूफ थी, जो सब के मना करने पर भी अंधी हो गई और चली आई तुम्हारे संग. अपनी बेवकूफी पर बहुत गुस्सा आ रहा है मुझे, किस हैवान के धोखे में आ गई मैं…” गुस्से में निकिता कहे जा रही थी कि अचानक फजल कुरसी से खड़ा हुआ जैसे शैतान लंबी नींद से जागा हो और निकिता के सामने आ खड़ा हुआ.

“हैवान… हैवान हूं न… तो साली हैवान होना क्या होता है, मैं दिखता हूं तुझे,” कहते हुए फजल ने चटाचट निकिता के गाल पर तमाचे मारना शुरू कर दिया.

तैयार नहीं थी निकिता इस बात के लिए कभी मांबाप ने उस पर हाथ नहीं उठाया, फूलों की तरह सहेज कर रखा था उन्होंने अपनी बेटी को. आज किस दुर्दशा में है उन की बेटी. अगर पापा देखते तो आज निश्चय ही इस अफसोस में मर जाते.

आखिर फजल ठहरा हट्टाकट्टा गबरू जवान, उस के हाथों की ताकत निकिता के गाल सह न पाए, उसे दिन में ही तारे नजर आने लगे, आंखों के सामने अंधेरा छा गया, सारा घर घूमता नजर आ रहा था. धम्म से बैठ गई कुरसी पर निकिता.

अब तो फजल आएदिन इस तरह की मारपीट करता रहता. उस की हिंसा का तो यह आलम था कि वह उन व्यक्तिगत पलों में भी रोमांटिक होने के बजाय हिंसक पशु ही होता, जिस प्यार का सपना ले कर निकिता अपना मासूम लड़कपन वाला आंगन छोड़ कर आई थी कि फजल की बांहों में खो कर खुशीखुशी अपना अतीत भुला देगी और सुनहरे भविष्य के सपने देखेगी, सारे सपने कतराकतरा हर दिन टूट रहे थे और टूट रही थी निकिता. जिस प्यार की बस्ती को छोड़ कर जिस के साथ अपना गुलशन सजाने आई थी, वह निर्दयी निकला और बिखर गया उस के सपनों का आशियाना… किसी से कह भी नहीं पा रही थी अपनी पीड़ा, आखिर यह उस का फैसला था.

भाई ने तो उसी दिन अपने सारे नाते खत्म कर दिए थे. कहने को कोई अपना न था, मित्रों के सामने वह अपने इस फैसले की धज्जियां नहीं उड़ना चाहती थी, इसलिए बस मुसकान चिपकाए रहती होंठों पर.

अपनी हरकतों को अंजाम दे फजल तो भड़ाक से दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया और रह गई निकिता अकेली अपने टूटे सपनों के साथ, बिखरते भविष्य की किरचें समेटने को विवश काफी देर तक फूटफूट कर रोती रही. कोई नहीं था पास, जो उस के आंसू पोंछ सके, उस के कंधे पर हाथ धर कह सके, मैं हूं न, पछतावे की आग में जल रही थी वह, आखिर यह अकेलापन उस ने अपनी दुर्बुद्धि के चलते स्वयं चुना है. मांबाप हमेशा बच्चों का भला ही चाहते हैं. बच्चे हैं जो चार अक्षर क्या पढ़ लेते हैं, अपने भविष्य के नियंता खुद बन बैठते हैं और उन की परवरिश में खोई रातों की नींद, उन्हें मंजिल तक ले जाने में बहाए पसीने को मांबाप के फर्ज का नाम दे कर अपनी मनचाही राह पर निकल पड़ते हैं. फिर चाहे वह राह उन्हें खाई की ओर ही क्यों न ले जाए.

 

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