“यह क्या फजल, तुम आज फिर यह शरीफे की पेटी उठा ले आए,” डाइनिंग टेबल पर बैठ लैपटौप पर औफिस का काम कर रही निकिता ने झुंझलाते हुए कहा.

“तुम्हें पता है न मुझे शरीफा बहुत पसंद है, फिर क्यों बारबार कहती हो,” फजल ने उसी तैश में आ कर जवाब दिया.

पास ही डाइनिंग टेबल पर बैठा फजल कांटे की नोंक से शरीफे की एकएक आंख का भेदन कर बड़े इतमीनान से उठाता, फिर मुंह में डालता, उस के ऊपर का मांसल हिस्सा चूसता और उस के बीज को वहीं थूक देता. बीज चिकने होने की वजह से उचट कर कमरे में यहांवहां फैल जाते.

“मैं तो कहता हूं कि तुम भी खाओ तो तुम्हें भी मजा आने लगेगा. बड़ी अजीब चीज है यह शरीफा. इस का एकएक अंग कितना लाजवाब है,” फजल के चेहरे पर अजीब से भाव थे.

“मुझे नहीं खाना, तुम्हें ही मुबारक. मगर इतना तो सोचो, खाने का भी सलीका होता है फजल, तुम पास में कोई डिस्पोजल रख उस में बीज डाल सकते हो... यह क्या बात हुई कि पूरे कमरे में फैला दो. आखिर साफ मुझे ही करना पड़ता है. तंग आ गई हूं तुम्हारे इस शरीफे के शौक से. अरे, खाओ तो कम से कम इनसानों की तरह.”

“हां, बताओ... कैसे होता है इनसानों की तरह खाना,” कहते हुए फजल ने कुटिल मुसकान फेंकते हुए पेटी से एक शरीफा उठाया और निकिता के मुंह में जबरन ठूंसने लगा, जिस से शरीफा फूट गया. कुछ निकिता के चेहरे पर फैल गया, बाकी बचा उस के कपड़ों पर.

“फजल, यह क्या बदतमीजी है...?" निकिता गुस्से में चिल्लाई, "मैनर्स नाम की कोई चीज नहीं है तुम में,” निकिता ने गुस्से में आ कर कहा और बदहवासी में उठने को हुई तो धक्का लगने से उस के लैपटौप का वायर खिंच जाने से वह जमीन पर गिर पड़ा.

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