स्वाभाविक था कि नानी को यह सब सहन हो सकता है, पर मामी को चिंता अपने बच्चों की थी, कहीं उन के बच्चों पर उस का असर न हो जाए. सो, उन का उदासीन भाव रहा. जैसेतैसे एक बरस दोनों ओर से अनचाहे रिश्ते का निर्वाह हुआ, किंतु उस से अधिक निभाह न हो सका.
कोई समाधान न देख कर काका ने उसे पुन: गांव चलने को कहा, किंतु उस ने मानो गांव न लौटने की प्रतिज्ञा कर ली थी. उस का व्यवहार बेहद रूखा हो गया था, इसलिए काका अधिक कुछ कहने से बचते, कहीं कुछ कर न बैठे लड़का... जैसा भी है कम से कम आंखों के सामने तो है. अतः उस की इच्छानुसार उसे फिर से शहर के एक स्कूल में एडमिशन दिला दिया. समझ आ रहा था उस की जिंदगी कैसे तहसनहस हो रही है, मगर कोई चारा भी तो नहीं.
दिल पर जब कोई भारी बोझ हो तो अपने जीवन के सुखदुख सब निरर्थक लगते हैं. अपने बाबू को पिछले एक बरस से देख रही थी रानू अपने ब्याह के लिए दरदर भटकते हुए. नजरें नहीं मिला पाती थी उन से, औलाद मांबाप का बोझ हलका करने के लिए होती है... मैं ने तो उन्हें कभी न खत्म होने वाला दर्द दिया है. किस्मत की मारी मैं, अपनों के लिए ही भार बन गई. महज 18 बरस की उम्र में जिंदगी इतनी पथरीली राहों से हो कर गुजरी है कि अब दामन में बस कांटे ही कांटे नजर आ रहे थे. बस इसी से नाउम्मीद हो उस ने काका से कहा था, “बाबू, मुझे ब्याह नहीं करना है.”