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‘बूआ से कहिए न, अब आ कर आप का घर संभाले. मां आप दोनों भाईबहन की सेवा करती रहती थीं. तब आप को हर चीज में कमी नजर आती थी. अब क्यों नहीं बूआ आ कर आप का खानापीना देखती. अब तो आप की बहन की आंख की किरकिरी भी निकल चुकी है.’

पापा अपने पुत्र के ताने सुनते रहते हैं जिस पर उन्हें गुस्सा भी आता है और पीड़ा भी होती है. अफसोस होता है स्नेहा को अपने पापा की हालत पर. बहन से इतना प्रेम करते हैं कि उसे ऊंचनीच समझा ही नहीं पाते. कभी बूआ से यह नहीं कह पाए कि देखो विजया, तुम यहां पर सही नहीं हो. तुम्हारी अधिकार सीमा इस घर तक नहीं है.

चाची के घर आई है स्नेहा, भाई की शादी पर. इकलौता बच्चा है चाची का जिस की शादी चाची अपने तरीके से करना चाहती हैं. मगर यहां भी बूआ का पूरापूरा दखल जिस का असर उसे चाची के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा है. समझ सकती है स्नेहा चाची के भीतर उठता तनाव. डर लग रहा है उसे कहीं अति तनाव में चाची का हाल भी मां जैसा ही न हो. चाची के साथ काम में हाथ बंटाती रही स्नेहा और साथसाथ चाची का चेहरा भी पढ़ती रही.

दोपहर में जब वह दरजी के यहां से, आने वाली भाभी के कुछ कपड़े ला कर चाची को दिखाने लगी तब चाचा का फोन आया. स्नेहा ने ही उठा लिया, ‘‘जी चाचाजी, कहिए, चाची थोड़ी देर के लिए लेटी हैं, आप मुझे बताइए, क्या काम है?’’

‘‘विजया दीदी से कोई बात हुई है क्या?’’

‘‘क्यों? क्या हुआ?’’

‘‘उन का फोन आया था, नाराज थीं, कह रही थीं, वह घर गई थी, उस की बड़ी बेइज्जती हुई?’’

‘‘बेइज्जती हुई, बेइज्जती, क्या मतलब?’’

अवाक् रह गई स्नेहा. आगेपीछे देखा उस ने, कहीं चाची सुन तो नहीं रहीं. झट से उठ कर दूसरे कमरे में चली गई और दरवाजा भीतर के बंद कर लिया.

‘‘हां चाचा, बताइए, क्या हुआ, क्या कहा चाची के बारे में बूआ ने? बेइज्जती कैसे हुई, बात क्या हुई?’’

‘‘यह तो उस ने बताया नहीं. बस, इतना ही कहा.’’

‘‘वाह चाचा, आप भी कमाल के हैं. बूआ ने चाबी भरी और आप का बोलना शुरू हो गया पापा की तरह. चाबी के खिलौने हैं क्या आप? 60 साल की उम्र हो गई और अभी तक आप को चाची के स्वभाव का पता ही नहीं चला. बहन से प्रेम कीजिए, मायके में बेटी का सम्मान भी कीजिए मगर अंधे बन कर नहीं. बहन जो दिखाए उसी पर अमल मत करते रहिए,’’ स्नेहा के भीतर का आक्रोश ज्वालामुखी सा फूटा, गला भी रुंध गया, ‘‘हमारी मां भी सारी उम्र पापा को सफाई ही देती रही कि उस ने बूआ की सेवा में कोई कमी नहीं की. मगर पापा कभी खुश नहीं हुए. आज हमारी मां नहीं हैं और पापा अकेले हैं. इस उम्र में आप भी क्या पापा की तरह ही अकेले बुढ़ापा काटना चाहते हैं? आई थी आप की बहन और बहुत अनापशनाप…झूठसच सुना कर गई है. चाची ने जबान तक नहीं खोली. कोई जवाब नहीं दिया कि बात न बढ़ जाए, शादी वाला घर है. उस पर भी नाराजगी और शिकायतें? आखिर बूआ चाहती क्या है? क्या आप का घर भी उजाड़ना चाहती है? आप अपनी बहन की जबान पर लगाम नहीं लगा सकते तो न सही, हम पर तो सवाल मत उठाइए.’’

उस तरफ चुप थे चाचा. कान के साथ लगा था फोन मगर जबान मानो तालू से जा चिपकी थी.

‘‘बूआ से कहिए अपनी इज्जत अपने हाथ में रखे. जगहजगह उसे सवाल बना कर उछालती फिरेगी तो जल्दी ही पैरों में आ गिरेगी. कल को आप की बहू आएगी. यह तो उसे भी टिकने नहीं देगी. चाची और मां में सहनशक्ति थी जो कल भी चुप रहीं और आज भी. हमारी पीढ़ी में तनाव पीने की इतनी क्षमता नहीं है जो सदियोंसदियों बढ़ती ही जाए. बूआ का कभी किसी ने अपमान नहीं किया और अगर हमारा सांस लेना भी उसे पसंद नहीं है तो ठीक है, आप उसे समझा दीजिए, हमारे घर न आए क्योंकि

हम चैन की सांस लेना चाहते हैं.’’

फोन काट दिया स्नेहा ने और धम से पलंग पर बैठ गई. इतना कुछ कह देगी, उस ने कभी सोचा भी नहीं था. तभी चाची दरवाजा खोल अंदर चली आईं.

‘‘क्या हुआ स्नेहा, किस का फोन था? तेरे ससुराल से किसी का फोन था? वहां सब राजीखुशी है न बेटी? क्या दामादजी का फोन था? नाराज हो रहे हैं क्या?’’

उस का तमतमाया चेहरा देख डर रही थी मीना. शादी से 10-12 दिन पहले ही चली आई थी न स्नेहा चाची की मदद करने को. हो सकता है ससुराल में उन्हें कोई असुविधा हो रही हो. मन डर रहा था मीना का.

‘‘मैं ने कहा था न, मैं अकेली जैसेतैसे सब संभाल लूंगी. तुम इतने दिन पहले आ गईं, उन्हें बुरा लग रहा होगा.’’

‘‘नहीं न, चाची. आप के दामाद ने मुझे खुद भेजा है यहां आप की मदद करने को. आप ही तो हैं हमारी मां की जगह. उन का फोन नहीं था, चाचा का फोन था. बूआ ने शिकायत लगाई है कि तुम ने उस की बेइज्जती की है.’’

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