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‘बूआ से कहिए न, अब आ कर आप का घर संभाले. मां आप दोनों भाईबहन की सेवा करती रहती थीं. तब आप को हर चीज में कमी नजर आती थी. अब क्यों नहीं बूआ आ कर आप का खानापीना देखती. अब तो आप की बहन की आंख की किरकिरी भी निकल चुकी है.’

पापा अपने पुत्र के ताने सुनते रहते हैं जिस पर उन्हें गुस्सा भी आता है और पीड़ा भी होती है. अफसोस होता है स्नेहा को अपने पापा की हालत पर. बहन से इतना प्रेम करते हैं कि उसे ऊंचनीच समझा ही नहीं पाते. कभी बूआ से यह नहीं कह पाए कि देखो विजया, तुम यहां पर सही नहीं हो. तुम्हारी अधिकार सीमा इस घर तक नहीं है.

चाची के घर आई है स्नेहा, भाई की शादी पर. इकलौता बच्चा है चाची का जिस की शादी चाची अपने तरीके से करना चाहती हैं. मगर यहां भी बूआ का पूरापूरा दखल जिस का असर उसे चाची के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा है. समझ सकती है स्नेहा चाची के भीतर उठता तनाव. डर लग रहा है उसे कहीं अति तनाव में चाची का हाल भी मां जैसा ही न हो. चाची के साथ काम में हाथ बंटाती रही स्नेहा और साथसाथ चाची का चेहरा भी पढ़ती रही.

दोपहर में जब वह दरजी के यहां से, आने वाली भाभी के कुछ कपड़े ला कर चाची को दिखाने लगी तब चाचा का फोन आया. स्नेहा ने ही उठा लिया, ‘‘जी चाचाजी, कहिए, चाची थोड़ी देर के लिए लेटी हैं, आप मुझे बताइए, क्या काम है?’’

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