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मोबाइल चलाते रहने से किताबें पढ़ना ज्यादा अच्छा लगता है मुझे. प्रणय आउट औफ स्टेशन थे और किताबें पढ़पढ़ कर मैं ऊब चुकी थी. तो यों ही मोबाइल पर फेसबुक खोल कर बैठ गई. कुछ लेखिकाओं की कविताएं और गजलें पढ़ कर मन खिल उठा. लेकिन जैसे ही आगे बढ़ी, मन खिन्न हो गया कि कैसेकैसे लोग हैं दुनिया में.

मूर्ति टाइप फोटो डाल कर लिखते हैं कि तुरंत लाइक करो. जय श्रीराम लिखो, तो तुम्हारे बिगड़े काम बन जाएंगे या फिर कोई अच्छी खबर सुनने को जरूर मिलेगी. कोरा झूठ. ऐसा भी कभी होता है क्या? फोन बंद करने ही लगी थी कि सोचा, चलो जरा अपना फेसबुक अकाउंट खोल कर देखती हूं. बहुत समय हो गया देखे. सच में पुराने कुछ फोटोज देख कर मन चिहुंक उठा और मुंह से निकल गया, ‘‘अरे, मेरे बिट्टू के बचपन की तसवीरें.’’ कुछ ही पलों में मैं पुरानी यादों में खो गई.

जब मेरा बिट्टू ढाई साल का था तब मैं ने उस के कई फोटोज यों ही निकाल लिए थे. कहा भी था प्रणय ने कि क्यों इतने गंदेसंदे चेहरे का फोटो ले रही हो? जरा तैयार तो कर दो पहले. तो मैं ने कहा था, ‘यही तो खुशनुमा यादें बनेंगी.’ अब सच में, इन्हें देख कर और भी कई यादें ताजा हो गईं. इस फोटो को देखो, कितना पाउडर पोत लिया था उस ने अपने चेहरे पर तभी. एकदम जोकर लग रहा था और मैं ने झट से उस की फोटो क्लिक कर ली थी. और यह उस का नीबू खाते हुए, कैसा बंदर सा मुंह बना लिया था और हम हंसहंस कर लोटपोट हो गए थे. मजाल थी जो ड्रैसिंग टेबल पर मेरा कोई भी मेकअप का सामान सहीसलामत रहे. इसलिए सबकुछ छिपा कर रखना पड़ता था मुझे उस के डर से.

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