जगनीत टंडन
कमरे के बोझिल वातावरण से बचने के लिए पलक कौफी बनाने की गरज से रसोई में चली आई. ट्रे बाहर ले जाने से पहले उस ने दरवाजे की ओट से बाहर झांक कर देखा तो पाया कि पल्लवी शून्य में खोई हुई थी. उस की आंखों में गहन चिंता की लकीरें थीं.
“मम्मी, कौफी,” पलक ने कप पल्लवी की तरफ बढ़ाते हुए कहा.
“ओह,” तंद्रा भंग हुई पल्लवी की. उस ने धीरे से कप थामा और टेबल पर रखती हुई पलक से बोली, “यह कैसा फैसला है, पलक. कैसे तुम एक अनजान लड़के के साथ अकेली उस के फ्लैट में रह सकती हो?”
“अनजान नहीं, मम्मी, हम पिछले 8 महीनों से एकदूजे को जानते हैं. यहां उस के पापा की फैक्ट्री की एक ब्रांच है, आयुष वही संभालता है. मेरी सहेली निशा के जन्मदिन की पार्टी में मेरी उस से मुलाकात हुई थी. यह फ्लैट भी उस का है. पेपर्स खत्म होने के बाद ही मैं यहां आ कर रहने लगी हूं.
“मम्मी, मैं यहीं जौब भी करना चाहती हूं. उस के प्यार ने मुझे हिम्मत दी है, तभी कल रात मैं आप लोगों को फोन करने की हिम्मत जुटा सकी.”
“पलक, बस, अब बहुत हो गया. जानती हो न उदित को, तुम्हारा यह फैसला उन्हें कभी मंजूर नहीं होगा. जब से घर में इस बात का पता चला है तब से एकदम घोंटू सन्नाटा पसरा हुआ है वहां.
“अपनी दादी का व्यवहार समझती हो न, मौनव्रत धारण कर चुकी हैं वे. और उदित की नजरों में तो मैं हमेशा की तरह दोषी करार दे दी गई हूं.”
पलक पल्लवी की ओर निहारती व कौफी के घूंट भरती हुई उस की बात सुन रही थी.
“मम्मी, पापा को मेरा यह फैसला क्यों मंजूर होगा जब उन्हें मैं ही मंजूर न थी.”
यह बात सुनकर पल्लवी ने उदास नजरों से पलक को देखा.
“यह फैसला मैं ने बहुत सोचसमझ कर लिया है बल्कि मुझे यह कहना चाहिए कि हम दोनों ने. आप जब पिछली बार आई न, तभी मैं ने आप को इस बारे में बताने की कोशिश की थी पर तब आप के पास टाइम ही नहीं था मेरी बात सुनने का.”
“मैं गीता की सगाई के लिए आई थी. तुम से मिली ही कितनी देर के लिए थी मैं. शाम की ट्रेन से तो वापसी थी मेरी.”
“चलिए मम्मी, कोई बात नहीं. अच्छा, तब आप ने आयुष को देखा था न?”
“बेटा, मेरे इस तरह एक नजर देखने से क्या होगा और फिर कोई तुम उस से शादी तो कर नहीं रही. यह लिवइन रिलेशनशिप में रहना…शादी के बिना तुम किसी लड़के के साथ अकेली कैसे रह सकती हो. इस मौडर्न जमाने के तौरतरीके के काबिल अभी हम नहीं हुए बेटा. मेरी बात मानो, वापस होस्टल में रहो और खुद को दी गई आजादी का नाजायज फायदा मत उठाओ.”
“मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं कोई गलत काम नहीं कर रही. शादी के बाद अगर रिश्ते में विश्वास, संयम और समझदारी की कमी रह जाए तो एकदूसरे को दोषी मान कर और समय को जिम्मेदार ठहराते हुए सारी उम्र एक उलझाऊ रिश्ते को बोझ की तरह खींचने से तो अच्छा है कि पहले ही एकदूसरे को परख लिया जाए.”
“अच्छा, ऐसे और कितने रिश्तों को परखोगी? और अंत में जिसे अपनाओगी उस के लिए क्या बचेगा तुम्हारे पास…दिल, दिमाग और शरीर सभी से तो रिक्त हो चुकी होगी.” उस की बात सुन कर पल्लवी कुछ उत्तेजित सी हो उठी थी.
“मम्मी, अपने जीवनसाथी के चुनाव के लिए कोई लाइन लगाने की जरूरत नहीं है मुझे.
लेखक-जगनजीत रंजन