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अगर आयुष के साथ लिवइन में रहने का फैसला किया है तो बहुत सोच कर. उस ने भी तो अपने मम्मीपापा को मनाया है इस के लिए और जहां तक शारीरिक संबंध की बात है, तो भविष्य में अगर कोई पुरुष मुझे सिर्फ कुंआरेपन की खोखली पहचान के आधार पर अपनाने या छोड़ने का फैसला करता है तो ऐसे इंसान से शादी करने में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है.”

“पलक, लड़कियों के लिए जमाना कभी नहीं बदलता, तुम समझती क्यों नहीं?”

“सौरी मम्मी,” पलक पल्लवी की बात को बीच में काटती हुई बोली, “अगर आप ने मुझे पढ़ायालिखाया है, सहीगलत को परखने की समझ बख्शी है तो मुझे अपनी जिंदगी को संवारने की जिम्मेदारी उठाने का मौका भी दीजिए. आप जानती हैं न कि यहां से वापस घर पहुंचते ही पापा मेरी शादी करवाने का विचार रखे हुए हैं और वह भी एक ऐसे शख्स से जिसे मैं न जानती होऊंगी और न ही मुझे उस से जानने का मौका दिया जाएगा. मम्मी, मैं आप की तरह घुटघुट कर नहीं जीना चाहती हूं. मैं जीना चाहती हूं हंसी, खुशी और आजादी के साथ.”

आंखें भर गईं पल्लवी की, शब्द जैसे गले में अटक कर रह गए.

“ठीक है पलक, अब जब यही तुम्हारा आखिरी फैसला है तो मेरी यहां कोई जरूरत नहीं, चलती हूं.” पल्लवी इतना कह कर उठ खड़ी हुई.

इक झटके में पलक पल्लवी के गले लग गई. आंसू उस की आंखों से भी बह चले थे.

“मम्मी, प्लीज ऐसे मत जाओ.” पलक ने पल्लवी को जकड़ लिया. वक्त भी इस मर्मस्पर्शी लमहे का गवाह बन गया.

“मम्मी, बस एक बार आयुष से मिल लो, आप को मेरी पसंद पर पछतावा नहीं होगा.”

“तो बेटा अगर ऐसी बात है तो दोनों सीधे शादी का निर्णय क्यों नहीं ले रहे हो,” पल्लवी पलक के आंसू पोंछती हुई बोली.

“इसलिए मम्मी, क्योंकि कुछ वक्त और हम एकदूसरे को बेहतर तरीके से जान सकें, पहचान सकें और बेहतर समझ सकें. एकदूसरे को कैसे वक्त देना है, पसंदनापसंद जाननी है, विचारों का तालमेल बिठाना है, आपसी संयोजन के साथ जिंदगी को जीना है मुझे. क्या अपनी ही जिंदगी के इस महत्त्वपूर्ण फैसले को करने का कोई अधिकार नहीं है मुझे?” रुक गई थी पल्लवी. आखिर पलक बेटी थी उस की. सदा पलक ने उस का मान रखा था, तो कैसे आज वह उस के मन की एक बात नहीं मान सकती थी. यों भी तो हमेशा पिता और दादी के प्यार को तरसती आई थी वह.

आयुष से पल्लवी की मुलाकात उस के जीवन में एक अनोखा मोड़ साबित हुई. आयुष एक सुलझा हुआ और सभ्रांत परिवार का लड़का लगा उसे. उस के मातापिता के विषय में पूछा उस ने तो आयुष ने उन के बारे में बताया ओर साथ ही, अपने मोबाइल पर उन की तसवीर भी दिखाई.

पल्लवी कुछ पल तो हैरानी से तसवीर देखती रही परंतु हैरानी और कुछ पूछने की मंशा उस ने वहां व्यक्त न की. पलक के साथ आयुष भी उसे स्टेशन तक छोड़ने आया था.

पल्लवी ने आयुष से उस की मम्मी का मोबाइल नंबर ले लिया था. अब जब ट्रेन चली तो पल्लवी का दिल और दिमाग भी पीछे छूटते हुए दृश्यों की भांति अतीत में विचरने लगे.

आयुष समीर का बेटा था. समीर, पल्लवी का पड़ोसी, उस का अच्छा दोस्त. पल्लवी के घर से सटा हुआ दूजा घर था उस का. पल्लवी के भाई का दोस्त तो था ही वह, पर पल्लवी की पढ़ाई का मददगार बना तो उन दोनों की दोस्ती भी बढ़ गई. बाद में तो समीर पल्लवी को ‘पल्लो’ कह कर चिढ़ाने भी लगा था. पल्लवी की शादी में काफी बढ़चढ़ कर कार्य करवाए थे उस ने.

शायद पल्लवी की शादी उन परिस्थितियों के हिसाब से सही वक्त पर हो गई थी क्योंकि समीर ने जो फैसला अलका के साथ मिल कर लिया था उस के बाद तो यों भी पल्लवी के घर वाले समीर और उस की पत्नी अलका से उस की दोस्ती रहने न देते.

 

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