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कमाऊ पत्नी व अच्छी नौकरी ने सत्यम को आसमान पर चढ़ा दिया था. ऐसे में मांबाप की फिक्र भला कहां? लेकिन एक समय ऐसा आया, जब नीमा व सत्यम दोनों मां से माफी मांगने के लिए गिड़गिड़ाने लगे. पढि़ए, सुधा जुगरान की हृदयस्पर्शी कहानी.

अमेरिका से हमारे बेटे सत्यम का फोन था. फोन सुन कर सौरभ बालकनी की तरफ चले गए. क्या कहा होगा सत्यम ने फोन पर…मैं दुविधा में थी…फिर थोड़ी देर तक सौरभ के वापस आने का इंतजार कर मैं भी बालकनी में चली गई. सौरभ खोएखोए से बालकनी में खड़े बाहर बारिश को देख रहे थे. मैं भी चुपचाप जा कर सौरभ की बगल में खड़ी हो गई. जरूर कोई खास बात होगी क्योंकि सत्यम के फोन अब कम ही आते थे. वह पिछले 5 साल से अमेरिका में था. इस से पहले वह मुंबई में नियुक्त था. अमेरिका से वह इन 5 सालों में एक बार भी भारत नहीं आया था.सत्यम उन संतानों में था जो मातापिता के कंधों पर पैर रख कर सफलता की छलांग तो लगा लेते हैं लेकिन छलांग लगाते समय मातापिता के कंधों को कितना ?ाटका लगा, यह देखने की जहमत नहीं उठाते. थोड़ी देर मैं सौरभ के कुछ बोलने की प्रतीक्षा करती रही फिर धीरे से बोली, ‘‘क्या कहा सत्यम ने?’’‘‘सत्यम की नौकरी छूट गई है,’’

सौरभ निर्विकार भाव से बोले.नौकरी छूट जाने की खबर सुन कर मैं सिहर गई. यह खयाल हमें काफी समय से अमेरिकी अर्थव्यवस्था के हालात के चलते आ रहा था. आज हमारा वही डर सच हो गया था. हमारे लिए हमारा बेटा जैसा भी था लेकिन अपने परिवार के साथ खुश है, सोच कर हम शांत थे.‘‘अब क्या होगा?’’‘‘होगा क्या…वह वापस आ रहा है,’’ सौरभ की नजरें अभी भी बारिश पर टिकी हुई थीं. शायद वह बाहर की बरसात के पीछे अपने अंदर की बरसात को छिपाने का असफल प्रयत्न कर रहे थे.‘‘और कहां जाएगा…’’ सौरभ के दिल के भावों को सम?ाते हुए भी मैं ने अनजान ही बने रहना चाहा.

‘‘क्यों…अगर हम मर गए होते तो किस के पास आता वह…उस की बीवी के भाईबहन हैं, मायके वाले हैं, रिश्तेदार हैं, उन से सहायता मांगे…यहां हमारे पास क्या करने आ रहा है…’’ बोलतेबोलते सौरभ का स्वर कटु हो गया था. हालांकि सत्यम के प्रति मेरा दिल भी फिलहाल भावनाओं से उतना ही रिक्त था लेकिन मां होने के नाते मेरे दिल की मुसीबत के समय में सौरभ का उस के प्रति इतना कटु होना थोड़ा खल गया.‘‘ऐसा क्यों कह रहे हो. आखिर मुसीबत के वक्त वह अपने घर नहीं आएगा तो कहां जाएगा.’’‘‘घर…कौन सा घर…उस ने इस घर को कभी घर सम?ा भी है…तुम फिर उस के लिए सोचने लगीं…तुम्हारी ममता ने बारबार मजबूर किया है मु?ो…इस बार मैं मजबूर नहीं होऊंगा…जिस दिन वह आएगा…घर से भगा दूंगा…कह दूंगा कि इस घर में उस के लिए अब कोई जगह नहीं है.’’ सौरभ मेरी तरफ मुंह कर के बोले. उन की आंखों के बादल भी बरसने को थे. चेहरे पर बेचैनी, उद्विग्नता, बेटे के द्वारा अनदेखा किया जाना, लेकिन उस के दुख से दुखी भी…गुस्सा आदि सबकुछ… एकसाथ परिलक्षित हो रहा था.‘‘सौरभ…’’ रेलिंग पर रखे उन के हाथ को धीरे से मैं ने अपने हाथ में लिया तो सुहाने मौसम में भी उन की हथेली पसीने से तर थी. सौरभ की हिम्मत के कारण मैं इस उम्र में भी निश्ंिचत रहती थी लेकिन उन को कातर, बेचैन या कमजोर देख कर मु?ो असुरक्षा का एहसास होता था.

‘‘सौरभ, शांत हो जाओ…सब ठीक हो जाएगा. चलो, चल कर सो जाओ, कल सोचेंगे कि क्या करना है.’’मैं उन को सांत्वना देती हुई अंदर ले आई. मु?ो सौरभ के स्वास्थ्य की चिंता हो जाती थी, क्योंकि उन को एक बार दिल का दौरा पड़ चुका था. सौरभ चुपचाप बिस्तर पर लेट गए. मैं भी जीरो पावर का बल्ब जला कर उन की बगल में लेट गई. दोनों चुपचाप अपनेअपने विचारों में खोए हुए न जाने कब तक छत को घूरते रहे. थोड़ी देर बाद सौरभ के खर्राटों की आवाज आने लगी. सौरभ के सो जाने से मु?ो चैन मिला, लेकिन मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी.आज सत्यम को हमारी जरूरत पड़ी तो उस ने बेधड़क फोन कर दिया कि वह हमारे पास आ रहा है और क्यों न आए…बेटा होने के नाते उस का पूरा अधिकार है, लेकिन जरूरत पड़ने पर इसी तरह बेधड़क बेटे के पास जाने का हमारा अधिकार क्यों नहीं है.

क्यों संकोच व ?ि?ाक हमारे कदम रोक लेती है कि कहीं बेटे की गृहस्थी में हम अनचाहे से न हो जाएं. कहीं बहू हमारा यों लंबे समय के लिए आना पसंद न करे.सत्यम व नीमा ने अपने व्यवहार से जानेअनजाने हमेशा ही हमें चोट पहुंचाई है. मातापिता की बढ़ती उम्र से उन्हें कोई सरोकार नहीं रहा. हमें कभी लगा ही नहीं कि हमारा बेटा अब बड़ा हो गया है और अब हम अपनी शारीरिक व मानसिक जरूरतों के लिए उस पर निर्भर हो सकते हैं.जबजब सहारे के लिए बेटेबहू की तरफ हाथ बढ़ाया तबतब उन्हें अपने से दूर ही पाया. कई बार मैं ने सौरभ व अपना दोनों का विश्लेषण किया कि क्या हम में ही कुछ कमी है, क्यों नहीं सामंजस्य बन पाता है हमारे बीच में…लगा कि एक पीढ़ी का अंतर तो पहले होता था, इस नई पीढ़ी के साथ तो जैसे पीढि़यों का अंतराल हो गया. इसी तरह के खयालों में डूबी मैं अतीत में विचरण करने लगी.सत्यम अपने पापा की तरह पढ़ने में होशियार था.

पापा के समय में ज्यादा सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए जो कुछ भी हासिल हुआ, धीरेधीरे व लंबे समय के बाद हुआ लेकिन सत्यम को उन्होंने अपनी क्षमता से बढ़ कर सुविधाएं दीं, उस की पढ़ाई पर क्षमता से बढ़ कर खर्च किया. सत्यम मल्टीनेशनल कंपनी में बड़े ओहदे पर था, शादी भी उसी हिसाब से बड़े घर में हुई. नीमा भी नौकरी करती थी. अपने छोटे से साधारण फ्लैट, जिस में सत्यम को पहले सभी कुछ दिखता था, नौकरी व शादी के बाद कमियां ही कमियां दिखाई देने लगीं. जबजब छुट्टी पर आता कुछ न कुछ कह देता :‘कैसे रहते हो आप लोग इस छोटे से फ्लैट में. ढंग का ड्राइंगरूम भी नहीं है. मम्मी, मु?ो तो शर्म आती है यहां किसी अपने जानने वाले को बुलाते हुए. यह किचन भी कोई किचन है…नीमा तो इस में चाय भी नहीं बना सकती.’पहले साफसुथरा लगने वाला फ्लैट अब गंदगी का ढेर लगता.फिर सप्लाई का पानी पीने से उन का पेट खराब होने लगा तो जब भी सत्यम या उस का परिवार आता तो मैं बाजार से पानी की बोतल मंगा कर रखने लगी, लेकिन लाइट चली जाती तो उन्हें इनवर्टर की कमी खलती…गरमी में ए.सी. व कूलर की कमी अखरती, तो सर्दी में एक अच्छे ब्लोवर की कमी…मतलब कि कमी ही कमी…नाश्ते में सबकुछ चाहिए.

पर सत्यम व नीमा कभी यह नहीं सोचते कि जिन सुविधाओं के बिना उन्हें दोचार दिन भी बिताने भारी पड़ जाते हैं उन्हीं सुविधाओं के बिना मातापिता ने पूरी जिंदगी कैसे गुजारी होगी और अब बुढ़ापा कैसे गुजार रहे होंगे. सत्यम पर क्षमता से अधिक खर्च न कर क्या वे अपने लिए छोटीछोटी मूलभूत सुविधाएं नहीं जुटा सकते थे? पर उस समय तो लगता था कि हमारा बेटा लायक बन जाएगा तो हमें क्या कमी है. सौ सुविधाएं जुटा देगा वह हमारे लिए.सत्यम कभी नहीं सोचता था कि वह जूस पी रहा है तो मातापिता को बुढ़ापे में एक कप दूध भी है या नहीं…जरूरी दवाओं के लिए पैसे हैं या नहीं. उन का तो यही एहसान बड़ा था कि वे दोनों इतने व्यस्त रहते हैं…इस के बावजूद जब छुट्टी मिलती है, तो वे उन के पास चले आते हैं, नहीं तो किसी अच्छी जगह घूमने भी जा सकते थे.

सत्यम का परिवार जब भी आता, उन को सुविधाएं देने के चक्कर में मैं अपना महीनों का बजट बिगाड़ देती. उन के जाते ही फिर उन के अगले दौरे के लिए संचय करना शुरू कर देती.सौरभ की जानकारी में जब यदाकदा ये बातें आतीं तो उन का पारा चढ़ जाता पर मां होने के नाते मैं उन को शांत कर देती. लगभग 5 साल पहले सत्यम मुंबई में नियुक्त था. उसी दौरान सौरभ को हार्ट अटैक पड़ा. डाक्टर ने एंजियोग्राफी कराने के लिए कहा. पूरी प्रक्रिया व इलाज पर आने वाले खर्चे को सुन कर मैं सन्न रह गई. ऐसे समय तो सत्यम जरूर आगे बढ़ कर अपने पिता का इलाज कराएगा. यह सोच कर मैं ने सत्यम को फोन किया. मेरे साथ तो कोई था भी नहीं, जो भागदौड़ कर पाता. खर्चे की तो बात ही अलग थी, लेकिन सत्यम की बात सुन कर मैं हक्कीबक्की रह गई थी :‘मम्मी, एक दूसरी कंपनी में मु?ो बाहर जाने का मौका मिल रहा है, इस समय तो मैं बिलकुल भी नहीं आ सकता. मु?ो जल्दी ही अमेरिका जाना पड़ेगा.

रही खर्चे की बात, तो थोड़ाबहुत तो भेज सकता हूं पर इतना रुपया मेरे पास कहां.’बेटे की आधी बात सुन कर ही मैं ने फोन रख दिया. अस्पताल में जीवनमृत्यु के बीच ?ाल रहे उस इनसान के जीवन के प्रति सत्यम के हृदय में जरा भी मोह नहीं जो उस का जन्मदाता है, जो जीवन भर नौकरी कर के अपने लिए मूलभूत सुविधाएं भी नहीं जुटा पाया, इसलिए कि बेटे के सफलता की तरफ बढ़ते कदमों पर रंचमात्र भी रुकावट न आए. आज उसी पिता के जीवन के लिए कोई चिंता नहीं. जिए तो जिए और मरे तो मरे…न आवाज में कंपन और न यह चिंता कि कहीं पिता दुनिया से न चले जाएं.जिस बेटे को उन के जीवन का मोह नहीं, उस से रुपएपैसे की सहायता भी क्यों लेनी है…लेकिन इलाज के लिए रुपए तो चाहिए ही थे. सौरभ ने एक छोटा सा प्लाट सस्ते दामों में शहर के बाहर खरीदा हुआ था. अब वह अच्छी कीमत में बिक सकता था, लेकिन सौरभ यह सोच कर कि सत्यम उस पर अच्छा सा सुख- सुविधापूर्ण घर बनाएगा, नहीं बेचना चाह रहे थे. फिर उस समय उन्होंने अपने एक परिचित से कहा कि वह उस जमीन को खरीद ले और उसे इस समय रुपए दे दे. उस परिचित ने भी जमीन सस्ती मिलती देख उन्हें रुपए दे दिए. उस समय उन्हें लगा, बेटे के बजाय जमीन खरीदना शायद ज्यादा हितकर रहा, जो इस मुसीबत में उन के काम आई. इधर सौरभ के आपरेशन का दिन फिक्स हुआ, उधर सत्यम अमेरिका के लिए उड़ गया.

वहां से पिता का हालचाल जानने के लिए फोन आया तो उस की आवाज में इस बात का कोई मलाल नहीं था कि वह अपने पिता के लिए कुछ नहीं कर पाया. तब से 5 साल हो गए. सत्यम और उन का संपर्क लगभग खत्म सा हो गया था. उस के फोन यदाकदा ही आते जो नितांत औपचारिक होते.और अब जब मंदी की चपेट में आ कर सत्यम की नौकरी छूट गई तो वह उन के पास आ रहा है. मुसीबत में इस असुविधापूर्ण, गंदे, छोटे से फ्लैट की याद उसे अमेरिका जैसे शानोशौकत वाले देश में भी आखिर आ ही गई, जहां वह लौट कर जा सकता है. अब कैसे रहेंगे सत्यम, नीमा व उन के बच्चे यहां…कैसे बनाएगी नीमा इस किचन में चाय…जहां पानी जब आए तब काम करना पड़ता है.

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