एक कागज पर शिवचरण ने अपना नाम लिखा और सचिव रामसेवक को दिया. रामसेवक ने कागज पर लिखा नाम पढ़ा तो उस के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं. एक सीनियर पुलिस अधिकारी के मामले में लिप्त होने के कारण उस का नाम जिले के सभी प्रशासनिक अधिकारी जानते थे.

‘‘काम क्या है?’’ रामसेवक ने रूखे स्वर में पूछा.

‘‘वह मैं कलक्टर साहिबा को ही बताऊंगा,’’ शिवचरण ने गंभीरता से उत्तर दिया.

‘‘बिना काम के वह नहीं मिलतीं,’’ रामसेवक ने फिर टालना चाहा.

‘‘आज उन से मिले बगैर मैं नहीं जाऊंगा,’’ शिवचरण की आवाज थोड़ी तेज हो गई.

कलक्टर साहिबा के केबिन के बाहर खड़ा चपरासी यह सब देख रहा था.

अंदर से घंटी बजी.

चपरासी केबिन के अंदर जा कर वापस आया.

‘‘आप अंदर जाइए. मैडम ने बुलाया है,’’ चपरासी ने शिवचरण से कहा.

कुछ ही क्षणों के बाद शिवचरण कलक्टर साहिबा हरिनाक्षी के सामने बैठे थे.

शिवचरण को देख कर कलक्टर साहिबा चौंक पड़ीं, ‘‘चाचाजी, आप अनुष्का के पिता हैं न?’’

‘‘आप अनुष्का को कैसे जानती हैं?’’ शिवचरण थोडे़ हैरान हुए.

‘‘मैं अनुष्का को कैसे भूल सकती हूं. उस के साथ मेरी गहरी दोस्ती थी. उस का कालिज से घर लौटते समय अपहरण कर लिया गया था. 3 दिन बाद उस की विकृत लाश नेशनल हाइवे पर मिली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार दरिंदों ने उस के साथ बलात्कार किया था और फिर गला घोंट कर उस की हत्या कर दी थी. अफसोस इस बात का है कि अपराधी आज भी बेखौफ घूम रहे हैं. खैर, आप बताइए कि आप की समस्या क्या है?’’

शिवचरण की आंखें भर आईं. एक तो बेटी की यादों की कसक और दूसरा अपनी समस्या पूरी तरह खुल कर बताने का अवसर मिलना. वह तुरंत कुछ न कह पाए.

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