निशा ने अपने जन्मदिन के अवसर पर हम सब के लिए बढि़या लंच तैयार किया. छक कर भोजन करने के बाद सब आराम करने के लिए जब उठने को हुए तो निशा अचानक भाषण देने वाले अंदाज में उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं आप सब से आज कुछ मांगना चाहती हूं,’’ कुछ घबराते, कुछ शरमाते अंदाज में उस ने अपने मन की इच्छा प्रकट की.
हम सब हैरान हो कर उसे देखने लगे. उस का यह व्यवहार उस के शांत, शर्मीले व्यक्तित्व से मेल नहीं खा रहा था. वह करीब 3 महीने पहले मेरी पत्नी बन कर इस घर में आई थी. सब बड़ी उत्सुकता से उस के आगे बोलने का इंतजार करने लगे.
‘‘आप सब लोग मुझ से बड़े हैं और मैं किसी की डांट का, समझाने का, रोकनेटोकने का जरा सा भी बुरा नहीं मानती हूं. मुझे कोई समझाएगा नहीं तो मैं सीखूंगी कैसे?’’ निशा इस अंदाज में बोल रही थी मानो अब रो देगी.
‘‘बहू, तू तो बहुत सुघड़ है. हमें तुझ से कोई शिकायत नहीं. जो तेरे मन में है, तू खुल कर कह दे,’’ मां ने उस की तारीफ कर उस का हौसला बढ़ाया. पापा ने भी उन का समर्थन किया.
‘‘बहू, तुम्हारी इच्छा पूरी करने की हम कोशिश करेंगे. क्या चाहती हो तुम?’’
निशा हिचकिचाती सी आगे बोली, ‘‘मेरे कारण जब कभी घर का माहौल खराब होता है तो मैं खुद को शर्म से जमीन में गड़ता महसूस करती हूं. प्लीज…प्लीज, आप सब मुझे ले कर आपस में झगड़ना बिलकुल बंद कर दीजिए…अपने जन्मदिन पर मैं बस यही उपहार मांग रही हूं. मेरी यह बात आप सब को माननी ही पड़ेगी…प्लीज.’’
मां ने उसे रोंआसा होते देखा, तो प्यार भरी डांट लगाने लगीं, ‘‘इस घर में तो सब का गला कुछ ज्यादा जोर से ही फटता है. बहू, तुझे ही आदत डालनी होगी शोर- शराबे में रहने की.’’
‘‘वाह,’’ अपनी आदत के अनुसार पापा मां से उलझने को फौरन तैयार हो गए, ‘‘कितनी आसानी से सारी जिम्मेदारी इस औरत ने बहू पर ही डाल दी है. अरे, सुबह से रात तक चीखतेचिल्लाते तेरा गला नहीं थकता? अब बहू के कहने से ही बदल जा.’’
‘‘मैं ही बस चीखतीचिल्लाती हूं और बाकी सब के मुंह से तो जैसे शहद टपकता है. कोई ऐसी बात होती है घर में जिस में तुम अपनी टांग न अड़ाते हो. हर छोटी से छोटी बात पर क्लेश करने को मैं नहीं तुम तैयार रहते हो,’’ मां ने फौरन आक्रामक रुख अपना लिया.
‘‘तेरी जबान बंद करने का बस यही इलाज है कि 2-4 करारे तमाचे…’’
गुस्से से भर कर मैं ने कहा, ‘‘कहां की बात कहां पहुंचा देते हैं आप दोनों. इस घर की सुखशांति भंग करने के लिए आप दोनों बराबर के जिम्मेदार हैं.’’
‘‘मनोज भैया, आप भी चुप नहीं रह सकते हो,’’ शिखा भी झगड़े में कूद पड़ी, ‘‘इन दोनों को समझाना बेकार है. आप भाभी को ही समझाओ कि इन की कड़वी बात को नजरअंदाज करें.’’
हम दोनों के बोलते ही मम्मी और पापा अपना झगड़ा भूल गए. उन का गुस्सा हम पर निकलने लगा. मैं तो 2-4 जलीकटी बातें सुन कर चुप हो गया, पर शिखा उन से उलझी रही और झगड़ा बढ़ता गया.
हमारे घर में अकसर ऐसा ही होता है. आपस में उलझने को हम सभी तैयार रहते हैं. चीखनाचिल्लाना सब की आदत है. मूल मुद्दे को भुला कर लड़नेझगड़ने में सब लग जाते हैं.
अचानक निशा की आंखों से बह कर मोटेमोटे आंसू उस के गालों पर लुढ़क आए थे. सब को अपनी तरफ देखते पा कर वह हाथों में मुंह छिपा कर रो पड़ी. मां और शिखा उसे चुप कराने लगीं.
करीब 5 मिनट रोने के बाद निशा ने सिसकियों के बीच अपने दिल का दर्द हमें बताया, ‘‘जैसे आज झगड़ा शुरू हुआ ऐसे ही हमेशा शुरू हो जाता है…मेरी बात किसी ने भी नहीं सुनी…क्या आप सब मेरी एक छोटी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते? मेरी खुशी के लिए मेरे जन्मदिन पर एक छोटा सा वचन नहीं दे सकते?’’
हम सभी ने फटाफट उसे वचन दे दिया कि उस की इच्छा पूरी करने का प्रयास दिल से करेंगे. उस का आंसू बहाना किसी को भी अच्छा नहीं लग रहा था.
निशा ने आखिरकार अपनी मांग हमें बता दी, ‘‘घर का हर काम कर के मुझे खुशी मिलती है. मेरा कोई हाथ बटाए, वह बहुत अच्छी बात होगी, लेकिन कोई किसी दूसरे को मेरा हाथ बटाने को कहे…सारा काम उसे करने को आदेश दे, यह बात मेरे दिल को दुखाती है. मैं सब से यह वचन लेना चाहती हूं कि कोई किसी दूसरे को मेरा हाथ बटाने को नहीं कहेगा. यह बात खामखा झगड़े का कारण बन जाती है. जिसे मेरी हैल्प करनी हो, खुद करे, किसी और को भलाबुरा कहना आप सब को बंद करना होगा. आप सब को मेरी सौगंध जो आगे कोई किसी से कभी मेरे कारण उलझे.’’
निशा को खुश करने के लिए हम सभी ने फौरन उसे ऐसा वचन दे डाला. वह खुशीखुशी रसोई संभालने चली गई. उस वक्त किसी को जरा भी एहसास नहीं हुआ कि निशा को दिया गया वचन आगे क्या गुल खिलाने वाला था. कुछ देर बाद पापा ने रसोई के सामने से गुजरते हुए देखा कि निशा अकेली ढेर सारे बरतन मांजने में लगी हुई थी.
‘‘शिखा,’’ वह जोर से चिल्लाए, ‘‘रसोई में आ कर बहू के साथ बरतन क्यों नहीं…’’
‘‘पापा, अभीअभी मुझे दिया वचन क्यों भूल रहे हैं आप?’’ निशा ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की, ‘‘पापा, प्लीज, आप दीदी से कुछ मत कहिए.’’
कुछ पलों की बेचैनी व नाराजगी भरी खामोशी के बाद उन्होंने निर्णय लिया, ‘‘ठीक है, मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगा, पर तुम्हारे काम में हाथ बटाना तो तेरे हाथ में है. मैं मंजवाता हूं तेरे साथ बरतन.’’
अपने कुरते की बाजुएं ऊपर चढ़ाते हुए वे निशा की बगल में जा खड़े हुए. वे अभी एक तश्तरी पर ही साबुन लगा पाए थे कि मां भागती रसोई में आ पहुंचीं.
‘‘छी…यह क्या कर रहे हो?’’ उन्होंने पापा के हाथों से तश्तरी छीनने की असफल कोशिश की.
मां ने चिढ़ और गुस्से का शिकार हो शिखा को ऊंची आवाज में पुकारा तो निशा ने दबी, घबराई आवाज में उन के सामने भी हाथ जोड़ कर वचन की याद दिला दी.
‘‘क्या मुसीबत है,’’ उन्होंने अचानक पूरी ताकत लगा कर पापा के हाथ से तश्तरी छीन ही ली और उन का हाथ पकड़ कर खींचती हुई रसोई से बाहर ले आईं.