‘आजकल धरम तो रहा ही नहीं. जातबिरादरी जैसी बातें भी भूल गए. अब क्या बिना नहाएधोए नौकर चौके में घुसेंगे?’
इस पर विभू का स्वर ऊंचा हो गया था, ‘अम्मां, दोनों भाभियां मुझ से उम्र में बड़ी हैं, इसलिए उन के बारे में कुछ नहीं कहता पर मीता तो थोड़ाबहुत घरगृहस्थी के कामों में हाथ बंटा सकती है. कभी आप ने सोचा है, आप के लाड़- प्यार से वह कितनी बिगड़ती जा रही है. इसे भी तो दूसरे घर जाना है. क्या यह ठीक है कि घर की सभी औरतें हाथ पर हाथ धरे बैठी रहें और बेचारी नीरा ही घर के कामों में जुटी रहे?’
‘तो किस ने कहा है इसे नौकरी करने के लिए. घर में इतना कुछ है कि आने वाली सात पुश्तें खा सकती हैं?’
‘वैसे मां, है तो यह छोटे मुंह बड़ी बात पर हम भी मीता को इसीलिए पढ़ा रहे हैं न कि वह स्वावलंबी बने. अगर उस की ससुराल के लोग भी उस के साथ वैसा ही सलूक करें जैसा आप लोग नीरा के साथ करते हैं तो कैसा लगेगा आप को?’
‘मीता की तुलना नीरा से करने का अधिकार किस ने दे दिया तुझे. वह किसी छोटे घर की बेटी नहीं है,’ बेटे के सधे हुए आग्रह के स्वर को तिरस्कार की पैनी धार से काटती हुई अम्मां चीखीं.
विभू उस के बाद एक पल भी नहीं रुके थे. स्तंभित नीरा को लगभग घसीटते हुए घर से चले गए थे.
बैंक से कर्ज ले कर नया घर बनवाया और एक नई गृहस्थी बसा ली दोनों ने. एक मारुति जेन गाड़ी भी किस्तों पर ले ली. लेकिन नीरा खुश नहीं थी. बारबार यही कहती, ‘मेरी वजह से तुम्हारा घर छूटा.’
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