लेखिका-अर्चना सक्सेना
जिस दिन वह लोग शताब्दी ऐक्सप्रैस से सुबह निकले, सुमित्रा कुछ अधिक असहज अनुभव कर रही थीं. कुछ तो तबियत खराब थी और कुछ असुरक्षा की भावना भी थी कि तबियत बिगड़ गई तो कौन संभालेगा. परंतु नीति से कुछ नहीं कहा उन्होंने. वह घर का सभी काम निबटा कर औफिस चली गई.
लक्ष्मी बरतन धो रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी. सुमित्रा दरवाजा खोलने बाहर आईं. कोठी के मेन गेट पर 2 लोग एक लिफाफा पकड़े खड़े थे. सुमित्रा ने प्रश्नवाचक दृष्टि उन पर डाल कर कुछ पूछने के लिए मुंह खोला ही था कि उन में से एक लिफाफा आगे करते हुए बोला, "आप का ही नाम सुमित्रा है? और यह घर आप के ही नाम है न?"
सुमित्रा ने हां में सिर हिलाया, तो वह पुनः बोला, "आप का साढ़े 3 लाख रुपए का बिजली का बिल बकाया है. आप के नाम नोटिस है, हमें बिजली काटनी होगी.""क्या...? यह कैसे संभव है? हम तो हर महीने बिजली का बिल समय से जमा करते हैं? और इस महीने नहीं भी किया हो तो भी इतना बिल कैसे आ सकता है?"
सुमित्रा को घबराहट हो गई थी."आप की प्रोपर्टी कौमर्शियल है. ऊपर से सालभर से आप ने बिल घरेलू खपत के हिसाब से भरा है. बिल तो जल्द से जल्द भरना ही पड़ेगा. तब तक के लिए बिजली तो काटी ही जाएगी.""अरे, पर ऐसे कैसे बिजली काट सकते हैं आप लोग? पहली बात तो यह कौमर्शियल प्रोपर्टी नहीं है, यहां अब कोई बिजनेस नहीं होता. दूसरे, बिना किसी नोटिस के आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? अभी तो कोई घर पर भी नहीं है. परिवार के लोग बाहर गए हैं और बहू औफिस. मुझे तो वैसे भी इन बातों की समझ नहीं है."
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