‘‘हां, पर उस ने अभी ही गैस बंद की है क्योंकि अब शाम का खाना बन रहा है,’’ उन्होंने सीधे न कह कर चाय न बनाने का कारण बताया.
‘‘ओह,’’ मेरे पीछे से डा. गज्जर की आवाज आई.
‘‘धन्यवाद, कोई बात नहीं,’’ मैं ने कहा और सामान ले कर दूसरी मंजिल पर पहुंच गया.
हम ने ऊपर जा कर हाथमुंह धोए, नाइट सूट पहन कर थोड़ी देर बाद नीचे आ गए क्योंकि खाने का समय हो गया था. हमारे साथ आए स्वास्थ्य कार्यकर्ता डोडियार भाई ने कहा, ‘‘साहब, जल्दी चलते हैं, नहीं तो वह भी खत्म हो जाएगा.’’ उस की बात सुन कर सब हंसते हुए नीचे आ गए.
दूसरे जिले से आईर् टीमों ने खाना शुरू कर दिया था. काफी लंबी लाइन लगी हुई थी. हम भी अनुशासित रूप से प्लेट ले कर लाइन में लग गए. ऐसा लग रहा था कि हम भी बाढ़ प्रभावित हैं. हमारे साथ आए डा. वैष्णव ने कहा, ‘‘मैं यहां लंगर का खाना नहीं खाऊंगा, मैं होटल में खाने जा रहा हूं.’’
यह सुन कर डा. पटेल हंसने लगे, ‘‘तो फिर तुम्हें उपवास रखना पड़ेगा. शहर में आज सारे होटल बंद हैं क्योंकि नदी का पानी काफी बढ़ चुका है.’’
मन मार कर उन्हें भी प्लेट ले कर लाइन में लगना पड़ा. खाना अच्छा व स्वादिष्ठ भी था. पर जब एक ही चपाती डाली तो मैं ने एक और चपाती के लिए कहा, तो उस ने ऐसा जवाब दिया कि मैं ने तो क्या, लाइन में खड़े किसी ने भी मांगने की गुस्ताखी नहीं की. उस का जवाब सुन कर मूड बहुत ही खराब हो गया था.