रूपमती को कौन समझाता कि जवानी में फैशन न करें तो कब करें? उसे टोकने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता. न औरत न मर्द. औरतें क्या कहतीं जब मर्द चूडि़यां पहन कर बैठ गए थे.
यह खंडहर जब तक आबाद था, रूपमती उस में बरसों रही. मकान दीनदयाल नाम के व्यवसायी का था. वह आज भी मिठाई की दुकान चलाता है. नकली मिठाई के धंधे में पिछले साल सजा भी काट चुका है. उस ने कई बार रूपमती को प्रलोभन दिया कि वह मकान ठीक कर उसे ही देगा लेकिन वह टस से मस नहीं हुई. किराया देना भी कई साल पहले बंद हो गया था. एक तरह से रूपमती का मकान पर कब्जा बरकरार रहा. मकान की हालत दयनीय होती जा रही थी. दीवारें कई जगहों से फूल कर एक ओर झुकने लगी थीं और टिन की छत ने भी भीतर झांकना शुरू कर दिया था. लेकिन रूपमती इन सब से बेफिक्र थी.
इस मकान में जो भी रहा, फलताफूलता रहा. जिस ने इसे बनाया, देखते ही देखते वह धनी हो गया. जब मकान दीनदयाल के नाम हुआ तो उस ने एक अलग कोठी खड़ी कर ली. उस ने यह मकान रूपमती के परिवार को किराए पर दे दिया. रूपमती भी मालामाल हो गई लेकिन यह मकान सेठ की गलफांस बन गया.
सबकुछ होते हुए भी सेठ को हरदम पुलिस का खौफ रहता. जब वह तकाजे के लिए आता, रूपमती उसे खदेड़ देती और गला फाड़फाड़ कर चिल्लाती, ‘‘रांड़ औरत हूं, इसलिए तू धमक जाता है इधर. अरे, देखती हूं कौन मर्द का बच्चा मुझ से मकान खाली करवाता है.’’
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