‘‘यही सब सोच कर तो मैं शादी नहीं करना चाहती, लेकिन तेरा यह कहना भी ठीक है कि पैसे से तो उन लोगों की मदद हमेशा की जा सकती है.’’
‘‘मैं आप को इंटरनेट पर उपलब्ध...’’
‘‘थोड़ा सब्र कर, ऋचा,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘उस से पहले मुझे स्वयं को किसी नितांत अजनबी के साथ जीने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना होगा और मुझे यह भी मालूम नहीं है कि मेरी उस से क्या अपेक्षाएं होंगी या व्यक्तिगत जीवन में मेरी अपनी मान्यताएं क्या हैं? इन सब के लिए चिंतन की आवश्यकता है.’’
‘‘और उस के लिए एकांत की, जो आप को दफ्तर और घर की जिम्मेदारियों के चलते तो मिलने से रहा. आप लंबी छुट्टी ले कर या तो सुदूर पहाडि़यों में या समुद्रतट पर एकांतवास कीजिए.’’
‘‘सुझाव तो अच्छा है, सोचूंगी.’’
‘‘मगर आज ही रात को,’’ ऋचा ने जिद की.
शिखा ने सोचा जरूर लेकिन अपनी पिछली जिंदगी के बारे में. पापा बैंक अधिकारी थे लेकिन चाहते थे कि उन के बच्चे उन से बढ़ कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बनें. शिखा का तो प्रथम प्रयास में ही चयन हो गया. ऋचा ने हाईस्कूल में ही बता दिया था कि उस की रुचि जीव विज्ञान में है और वह डाक्टर बनेगी. पापा ने सहर्ष अनुमति दे दी थी. मां के लाड़ले यश का दिल पढ़ाई में नहीं लगता था फिर भी पापा के डर से पढ़ रहा था लेकिन पापा के जाते ही उस ने पढ़ाई छोड़ कर अनुकंपा में मिली बैंक की नौकरी कर ली.
मां ने भी उस का यह कह कर साथ दिया कि वह तेरा हाथ बटाना चाह रहा है शिखा, बैंक की प्रतियोगी परीक्षाएं दे कर तरक्की भी करता रहेगा, लेकिन हाथ बटाने के बजाय यश ने अपना भार भी उस पर डाल दिया था. जहां उस की नियुक्ति होती थी, वहीं यश भी अपना तबादला करवा लेता था आईएएस अफसर बहन का रोब डाल कर. तरक्की पाने की न तो लालसा थी और न ही जरूरत, क्योंकि शिखा को मिलने वाली सब सुविधाओं का उपभोग तो वही करता था.