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राजेंद्र भी कुछ देर मौन खड़ा रहा, फिर चला गया. नंदिता के शब्दों ने न जाने क्यों मु?ो यह सोचने को मजबूर कर दिया कि हो न हो नंदिता और राजेंद्र एकदूसरे का होना चाहते रहे हों, लेकिन परिस्थितियों ने मु?ो नंदिता का पति बना दिया. रात हुई. हम दोनों की आंखों में नींद नहीं. आधी रात बाद नंदिता ने सिरदर्द की शिकायत की. दर्द बढ़ता ही गया. मैं ने डाक्टर को फोन किया. उस ने अगले दिन अस्पताल आने को कहा और तब तक नींद की दवा देने की सलाह दी. दवा लेने के कुछ देर बाद नंदिता सो गई लेकिन मेरी आंखों में नींद कहां, मैं चुपचाप उस के चेहरे की तरफ देखता रहा.

20 वर्ष पहले की युवा नंदिता, उस से वादविवाद प्रतियोगिता में भेंट, पहचान, घनिष्ठता, मेरा विवाह का प्रस्ताव, उस की अस्वीकृति, कुछ ही महीनों बाद स्वयं उस की तरफ से सहमति, विवाह, फिर संतानहीन वैवाहिक जीवन, नंदिता की बीमारी, राजेंद्र का प्रवेश, उन के संबंधों पर मेरा संदेह यह सब चलचित्र की तरह मेरी आंखों के सामने क्षणभर में घूम गया. न जाने क्यों, मु?ो बारबार लगता कि नंदिता और राजेंद्र के साथ कुछ अनहोनी जरूर हुई है. अगले दिन अस्पताल जाने के समय तक राजेंद्र भी आ गया. उस ने किसी से कोई बात नहीं की. बस, साथसाथ लगा रहा. डाक्टर ने दोबारा एमआरआई जांच की सलाह दी. मैं सम?ाता था, यह सब अंत समय की तैयारी थी, फिर भी सहमति दे दी. नंदिता जांच के लिए चली गई. मैं और राजेंद्र प्रतीक्षा करने लगे. दोनों मौन. मैं ने सोचा, क्यों न एक ?ाठ बोल कर सारा सच जान लूं तो पूछ ही बैठा, ‘‘राजेंद्र, क्या अब भी तुम मु?ा से छिपाओगे कि तुम और नंदिता एकदूसरे से पहले से परिचित नहीं हो?’’ मेरे इस प्रश्न से राजेंद्र कुछ घबरा सा गया था, कहने लगा, ‘‘तो फिर सच जान ही लीजिए.

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