लेकिन, जिस संस्था से दिव्या पढ़ी थी और संस्कार ले कर आई थी, वह उस की मर्यादा नहीं भंग करना चाहती थी. दिल यही कह रहा था कि अब जिन के साथ रहना है, जिन के साथ जीवन व्यवहार की प्रीति बांधनी है, उन्हें खुश करना, उन की स्वीकृति लेना, भारतीय वैवाहिक जीवन में नववधू के लिए जरूरी है. यह हिंदुस्तान है, यूरोप या अमेरिका नहीं, यहां स्त्री मात्र एक पुरुष से नहीं, उस के परिवार, मित्रों, सगेसंबधिंयों से संबंध जोड़ती है. शादी मात्र दो दिलों के बीच के स्नेह की गांठ नहीं, पारिवारिक और सामाजिक स्नेह संवादिता की बहती धारा का स्रोत है. शिक्षा दिए जाने वाले आदर्श नहीं, बल्कि उस मेें विचारों और परंपराओं के निष्कर्ष हैं.
इसीलिए सौरभ के फोन काट देने के बाद भी उस की मम्मी का दिल जीत लेने की धुन दिव्या पर सवार हो गई थी. उसे अपने गुण, रूप और संस्कारों पर पूरा भरोसा था. उसे स्वयं पर विश्वास था, इसलिए किसी भी तरह की कसौटी पर खरा उतरने के संकल्प के साथ दिव्या जब सौरभ के घर पहुंची, तो आनंद और आश्चर्य का पारावार न रहा.
अकसर लोगों के मन में यही धारणा होती है कि प्यार के प्रपंच में पड़ने वाली लड़कियां नखरे वाली, आलसी और बेकार होती हैं. इस पूर्वाग्रह से ग्रसित होने की वजह से जब लड़की प्रेमी के घर वालों से मिलने जाती है, तो प्रेमी के घर वाले खासकर मांएं कठोर मुखमुद्रा बना कर आरपार बेधने वाली नजरों से घूरती हैं. उन के चेहरे की विद्रूपता से ही उन के मन की बात का पता चल जाता है. लेकिन यहां तो एकदम उलटा था. दिल से सच्ची परख करने वाली सौरभ की मां की नजरों में ऐसा कुछ भी नहीं झलक रहा था कि दिव्या को किसी तरह की कठिनाई या भय का सामना करना पड़ता.