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देवेश को अम्मा ने जब से रेखा के बारे में बताया है, जरमनी में हर स्त्री उसे रेखा सी दिखती है. वह रैस्त्रां के आगे से गुजरता है तो लगता है, रेखा इस रैस्त्रां में शराब पी रही होगी. दूसरे ही क्षण सोचता- यहां रेखा कैसे आ सकती है?

औफिस में भी देवेश बेचैन रहता है. दिनरात सोतेजागते ‘रेखा शराबी’ का खयाल उस से जुड़ा रहता है. देवेश का जी करता है, अभी इंडिया के लिए फ्लाइट पकड़े और पत्नी के पास पहुंच जाए, बांहों में भर कर पूछे, ‘रेखा, तुम्हें जीवन में कौन सा दुख है जो शराब का सहारा ले लिया.’ देवेश कितनी खुशियां ले कर आया था जरमनी में. इंडिया में घर खरीदेंगे, मियांबीवी ठाट से रहेंगे. फिर बच्चे के बारे में सोचेंगे. मां भी साथ रहेंगी. किंतु क्यों? ये सब क्या हुआ, कैसे हुआ? किस से पूछे वह? जरमनी में तो उस का अपना कोई सगा नहीं है जिस से मन की बात कह भी सके.

वह इतना मजबूर है कि न तो रेखा से कुछ पूछ सकता है और न ही अम्मा से. बस, मन की घायल दशा से फड़फड़ा कर रह जाता है. उसे लग रहा है कि वह डिप्रैशन में जा रहा है. दोस्तों ने उस की शारीरिक अस्वस्थता देख उसे अस्पताल में भरती करा दिया था.

कुछ स्वस्थ हुआ तो हर समय उसे पत्नी का लड़खड़ाता अक्स ही दिखाई देता. घबरा कर आंखें बंद कर लेता. और, अम्माजी, उस दिन बेटे से बात करने के बाद ऊपर से तो सामान्य सी दिख रही थीं किंतु अंदर से उन को पता था वे कितनी दुखी हैं. पूरी रात सो न सकी थीं. बेचारी क्या करतीं. आज सुबह वे हमेशा की तरह जल्दी न उठीं.

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