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विकास को दिवाकर ने हमेशा अपना छोटा भाई ही सम झा था. उस की पत्नी और एक बच्चा ठाणे में ही रहते थे. दिवाकर विकास का हर तरह से खयाल रखते थे तो विकास भी दिवाकर का बहुत निष्ठावान सहायक था. एक विधायक और एक सहायक के साथसाथ दोनों दोस्त, भाई जैसा व्यवहार भी रखते थे. दोनों ने बैठ कर औनलाइन बहुतकुछ देखा, विषय चुने और सिक्किम मणिपाल यूनिवर्सिटी में पत्राचार से ग्रेजुएशन करने के लिए फौर्म भर दिया गया. सब ठीक रहा, औफिस में ही बुक्स भी आ गईं.

दिवाकर ने नई बुक्स को हाथ में ले कर बच्चे की तरह सहलाया, आंखें भीग गईं, उन्हें कभी पढ़ने का शौक था पर साधन नहीं थे. फिर कुछ नया करने की चाह उन्हें मुंबई ले आई थी. अब उन के सामने एक नई राह थी, शिक्षा की राह, जिस पर उन्होंने अपने कदम उत्साहपूर्वक बढ़ा दिए थे. व्यस्त वे पहले भी रहते थे. सो, मालिनी और बच्चों को उन्हें व्यस्त देखने की आदत थी ही. अब वे औफिस में बैठ कर पढ़ने भी लगे थे. कभी पढ़ते कभी नोट्स बनाते. उन्हें अपने जीवन में आए इस मोड़ पर बड़ा आनंद आ रहा था. जीवन एक नई उमंग, उत्साह से भर उठा था. विकास उन के इस मिशन में हर पल उन के साथ था. उन की सेहत का, उन के खानेपीने का पूरा खयाल रखता था.

परीक्षाओं का समय आया तो वह दिवाकर के साथ भोपाल भी गया. परीक्षाकाल में दोनों होटल में ही रहे. अब परीक्षाफल के इंतजार में दिवाकर बेचैन होते तो विकास हंस पड़ता. अपने क्षेत्र की समस्याओं के साथ जब दिवाकर अपनी पढ़ाई भी विकास के साथ डिस्कस करने लगे, तो विकास मुसकराता हुआ उन का उत्साह देखता रहता. दिवाकर का जब रिजल्ट आया तो वे उस समय घर में ही थे. विकास रिजल्ट देखने के बाद उन के घर पहुंच गया. मिठाई का डब्बा मालिनी को देते हुए बोला, ‘‘मैडम, मुंह मीठा कीजिए.’’

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