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‘हमारे पास देने को दहेज के नाम पर कुछ भी नहीं है,’ द्रोपा के पिता जीवालाल ने साफ शब्दों में अनूप के पिता को बता दिया था.

अनूप के पिता ने भी कहा था, ‘भाईसाहब, हम भी पूरेसूरे हैं. हमारी माली हालत आप जैसी ही होगी. हमें सुंदर, सुशील व घर को संभालने वाली बहू चाहिए. ये गुण आप की बेटी में जरूर होंगे.’

शादी से पहले अनूप कई बार द्रोपा को अपने घर ले गया था. वह अपने सासससुर से मिली थी, सब अच्छे लगे. सब अपने घर जैसा लगा. लगा ही नहीं कि यह उस की होने वाली ससुराल है.

घर में 2 देवर, दोनों इंजीनियरिंग कर रहे थे और अनूप के मांबाप थे. घर के नाम पर 2 कमरों का फ्लैट था ठीक उस के घर की तरह. ससुर अकाउंटैंट थे. सास उस की मां की तरह हाउसवाइफ थी. भाइयों में अनूप सब से बड़ा था.

अनूप व द्रोपा की शादी का आयोजन एक हौल में हुआ था. दोनों परिवारों ने मिल कर एक पार्टी दे दी थी. वह खुश थी कि उसे मनचाहा वर मिल गया है. शादी से पहले अकसर दोनों में बहस होती थी. ‘हम हनीमून के लिए कहां जाएंगे?’

‘मैं ने तो आज तक कोई हिल स्टेशन नहीं देखा.’ ‘मैं भी कौन सा घूमने गया हूं. दिल्ली से इलाहाबाद और इलाहाबाद से दिल्ली. मुल्ला की दौड़ मसजिद तक. हां, हम कहीं भी जाएं पर इलाहाबाद नहीं जाएंगे, बोर हो गया हूं.’ ‘पर मैं तो दिल्ली छोड़ कर कहीं नहीं गई. मेरे लिए तो हर शहर नया होगा.’

‘तो फिर हम आगरा चलते हैं, वहां ताजमहल पर हनीमून मनाएंगे. सुबह चलेंगे, दूसरे दिन सुबह दिल्ली वापस.’ अनूप अपने प्रस्ताव पर खुद ही हंस पड़ता. द्रोपा मुंह फुला कर बैठ जाती. फिर मानमनौअल, प्यारभरी चुहल और हंसनाखिलखिलाना. जब वह हंसती तो अनूप द्रोपा को एकटक देखता.

‘जानती हो, जब तुम हंसती हो तो ऐसा लगता है समुद्र की लहरें ठाठें मार रही हैं.’ ‘अच्छा, ऐसा क्या?’

‘हां, तुम, बस, यों ही हंसती रहा करो. बड़ी प्यारी लगती हो.’ अनूप उसे बांहों में भर लेता और हनीमून की बात वहीं की वहीं. शादी के बीच का वह हादसा कभी नहीं भुलाया जा सकता. अचानक द्रोपा के ससुर को दिल का दौरा पड़ा. अफरातफरी मच गई. अनूप पिता को ले कर अस्पताल भागा और अनूप की मां द्रोपा को ले कर घर आ गई. घर का माहौल एकदम से बदल गया था. ससुर की तबीयत थोड़ी संभली, तो सब को चैन आया. पर वे इस लायक नहीं थे कि नौकरी पर जा सकें. काफी कमजोर हालत में थे.

एक दिन अनूप ने बताया, ‘पापा ने इस फ्लैट के लिए बैंक से लोन लिया था जिस की हर महीने किस्त जाती है. भाई के लिए भी एलआईसी से लोन लिया था जिस की किस्तें जा रही हैं. घर की किस्त 10 हजार रुपए महीना है और भाई की पढ़ाई की लोन किस्त 5 हजार रुपए महीना. ये दोनों पापा की तनख्वाह से कट रही थीं. पापा की हालत देख कर नहीं लगता कि पापा नौकरी पर जा सकेंगे. अब इस की भरपाई की जिम्मेदारी हम पर है. आशा है, तुम मेरा साथ दोगी. घर का खर्च व पापा की दवाइयों का खर्च तुम संभालो और मैं एलआईसी और बैंक से लिए गए लोन की किस्तों को चुकाऊंगा. बात सिर्फ 4 साल की है. 4 साल बाद दोनों छोटे भाइयों की नौकरी लग जाएगी. तब वे दोनों हमारी मदद करेंगे. देखना, सब ठीक हो जाएगा.’

वह अवाक थी. सास ने सही कहा था, हम दोनों की माली हालत एक सी है. वहां भी किस्तों का बो?ा अकेले पापा ढो रहे हैं. वे भी यही कहते थे, बस, थोड़े दिनों की बात है, बाद में सब ठीक हो जाएगा. यहां पति भी यही सम?ा रहे थे. आखिर कब तक यह चलेगा? शायद सारी जिंदगी? शादी से पहले द्रोपा की जिंदगी नीरस, बेनूर थी. शादी के बाद सोचा था, यहां खुल कर अपनी जिंदगी अपने तरीके से जिएगी. यहां तो कमाने वाले 3 हैं और अब तो

2 जन हैं, फिर भी सबकुछ पहले जैसा है- वही किस्तों का बो?ा, वैसी ही सोच. मेरा जीवन तो किस्तों की गणित के बीच ही बीत जाएगा. ससुर बिस्तर पर है. सासुमां बिलकुल मम्मी की तरह सारा दिन घरपरिवार के लिए कोल्हू के बैल की तरह जुटी रहती हैं.

जल्दी ही सम?ा में आ गया था कि यहां सब को परिवार की जरूरत के हिसाब से चलना पड़ता है. यहां अपनी लीक से हट कर सोचना गुनाह है, खासकर, खर्च के मामले में सब को हाथ खींच कर चलना पड़ता है. पापा के घर की तरह यहां भी कोई नया सपना देखना मना है. इसीलिए द्रोपा चुपचाप सारा कुछ ढोती जा रही है. कभी नहीं कहा कि ‘हनीमून न सही, कहीं और घूमने चलें?’

घूमने का प्लान बनातेबनाते 2 वर्ष गुजर गए. फिर अवनी का जन्म हुआ. बहुत खुश थी वह नन्ही सी, प्यारी सी परी को पा कर. एक दिन उस ने अनूप से कहा, ‘क्यों न हम बेटी के आने की खुशी में अच्छी सी पार्टी दें?’ पहली बार द्रोपा की खुशियों ने उछाल मारी थी. वह मन ही मन में मेहमानों की लिस्ट भी तैयार कर चुकी थी.‘बढि़या सी पार्टी का मतलब है एक लाख रुपए का खर्चा. कहां से आएंगे इतने पैसे?’ उत्तर सुन कर मन बु?ा गया. लगा सामने पति अनूप नहीं, बल्कि पिता जीवालाल खड़े हैं.

अभी पापा की तरह किस्तों की लिस्ट पढ़ी जाने लगेगी और कुछ सुनने से अच्छा है यहां से चुपचाप खिसक लो. ठीक भी है अवनी के आने से घर का खर्च बढ़ गया है. उसे पूरा करें या फिर पार्टी पर खर्च करें.

इस बीच दोनों भाइयों की पढ़ाई भी खत्म हो गई है. दोनों ने नौकरी के साथसाथ शादी भी कर ली है. दोनों ढाईढाई हजार रुपए घरखर्च में डाल कर जिम्मेदारी से पल्ला ?ाड़ लेते हैं. जो पैसा बैंक में लोन की किस्त अदा करने में जाता था, वह अवनी पर खर्च हो जाता है, बाबूजी की दवाओं पर खर्च हो जाता है. न कोई कुल्लू गया, न मनाली, न आगरा. दोनों मियांबीवी एक ही जगह बैठे कर्जों,  आमदनी और खर्चों के हिसाब में उल?ो हुए हैं. दोनों खूंटे से बंधी गाय की तरह हैं जो सुबह से शाम तक घूम कर एक घेरे में सिमटे हुए हैं.

 

एक दिन अनूप ने बताया, ‘मैं ने कार  लोन के लिए अप्लाई किया है. अगले महीने कार आ जाएगी.’ ‘क्यों? स्कूटर से काम चल रहा है न.’ ‘नहीं, स्कूटर भी खटारा हो गया है. हमें अपना स्टैंडर्ड भी तो ऊंचा करना है,’ अनूप ने ऐसे कहा जैसे वह आगरा का ताजमहल खरीदने जा रहा है.

द्रोपा को अनूप पर बड़ा गुस्सा आया. 2 बरस से अवनी दीवार वाला बड़ा टीवी खरीदने के लिए जिद कर रही है, तो अनूप ने यह कह कर बच्ची को बहला दिया, ‘बेटा, अब की बोनस मिलेगा, तो पक्का बड़ा टीवी खरीदेंगे. फिर हम मुंबई भी जाएंगे. तुम्हें वहां डांस शो भी दिखाएंगे. स्टेज शो देखने का तुम्हें बहुत शौक है न.’

पापा की बात सुन कर अवनी खुशी से तालियां बजाती है. लेकिन द्रोपा गुस्से में कहती है, ‘क्यों बच्ची से ?ाठा वादा करते हो. कभी सोचा है तुम ने, इन्हीं ?ाठी बातों से बच्ची का तुम पर से विश्वास उठ जाएगा.’

अनूप को अंजाम की परवा नहीं है, ‘छोड़ो, वह तो बच्ची है, थोड़ी देर में सब भूल जाएगी. तुम यह सब मेरे ऊपर छोड़ो. रही बात गाड़ी लेने की, वह तो मैं जरूर लूंगा.’ लेकिन द्रोपा जानती है अवनी की आंखों में चमकते तारों से टिमटिमाते सपनों का क्या होगा?

यह बात उस ने अपनी सहेली सुप्रिया को बताई थी. बताते समय उस की आंखें भरी हुई थीं, ‘मेरे जीवन के सारे सपने पैसों की कमी के कारण दफन होते रहे तो क्या अवनी के साथ भी वही होगा? शायद, उस के जीवन का पहला अध्याय भी मेरी तरह लिखा जाएगा और शायद आगे भी यों ही होगा.’

शिप्रा ने उसे दिलासा दी, ‘नहीं, ऐसा नहीं होगा. वक्त बदलेगा. तेरी बेटी के सपने जरूर पूरे होंगे.’ घर की बालकनी में खड़ी द्रोपा यह सब याद कर रही थी कि अवनी की आवाज उस के कानों में पड़ी. ‘‘मम्मी, आप बालकनी में खड़ी हो कर बाजार की रौनक का मजा ले रही हो और मैं आप को आवाजें दे कर थक गई.’’‘‘क्या हुआ बेटा?’’

 

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