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‘‘‘चलचल, बाकी बात कल कर लेंगे. पत्नी है न, तो पत्नी का फर्ज पूरा कर.’

‘‘मेरे सारे स्वप्न सुहाग सेज पर जल कर राख हो गए. मेरा कहीं भी अकेले आनाजाना बंद था, फोन उठाना भी मना था. औफिस की पार्टियों में भी वे अकेले ही जाते. मेरा मेकअप करना भी अजय को पसंद नहीं था. कपड़े भी मुझे उन से पूछ कर पहनने पड़ते थे. एक बार दुकान में उन के एक सहकर्मी मिल गए थे.

‘‘‘अरे अजय, क्या हाल हैं, अच्छा, भाभीजी भी साथ हैं, नमस्ते, भाभीजी.’

‘‘‘जी नमस्ते,’ मैं ने नमस्ते का जवाब दिया.

‘‘‘आज पता चला, भाभीजी, अजय आप को छिपा कर क्यों रखता है. कई बार कहा मिलाओ भाभी से. पर यह तो...’

‘‘‘अच्छा भाई रमेश, कल औफिस में मिलते हैं, आज थोड़ा जल्दी है,’ कहते हुए पति ने अपने साथी से पीछा छुड़ाया.

‘‘फिर घर आ कर अजय ने मुझ पर पहली बार हाथ उठाया था. परंतु वह आखिरी बार नहीं था. उस के बाद तो यह उन की आदत में शुमार हो गया. अब सोचती हूं तो लगता है कि मुझे मार कर, मेरे चेहरे पर निशान बना कर अजय अपने अहं को संतुष्ट करते थे. अजय का साधारण नैननक्श का होना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी. परंतु उन्हें कौन समझाता?

‘‘जब मेरे दोनों बच्चों नमन और रजनी का जन्म हुआ, मेरी जिंदगी बदल सी गई. मुझे लगा ये दोनों मेरा दर्द समझेंगे. परंतु जैसेजैसे बच्चे बड़े होते गए, उन का व्यवहार मेरे प्रति बदलता चला गया. उन्होंने अपने पिता का रूपरंग ही नहीं उन की सोच तथा उन का व्यवहार भी ले लिया था. दोनों की जिंदगी में दखल सिर्फ उन के पिता का था. रजनी और नमन के 15वें जन्मदिन पर तो कुछ ऐसा हुआ जिस ने मुझे मानसिक रूप से तोड़ दिया.

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