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‘मुझे दुलहन बना कर अपने घर कब ले जाओगे?’ इरा पूछती.

‘बहुत जल्दी,’ वे इरा का मन रखने को कह देते, पर अपने घर वालों की कट्टरता भांप कर सोच में पड़ जाते. फिर बात बदल कर गंभीरता से कह उठते, ‘इरा, तुम मछली खाना बंद क्यों नहीं कर देतीं? क्या सब्जियों की कमी है जो इन मासूम प्राणियों का भक्षण करती रहती हो?’

यह सुन वह हंस पड़ती, ‘सभी बंगाली खाते हैं.’

‘पर हमारे घर में मांसाहार वर्जित है.’

‘पहले शादी तो करो. मैं मछली खाना बंद कर दूंगी.’ एक दिन ननिहाल वालों ने उन की चोरी पकड़ कर उन्हें खूब डांटाफटकारा. इरा को भी काफी जलील किया गया. घबरा कर वे प्यारव्यार भूल कर ननिहाल से भाग आए. मामामामी ने उन के मातापिता को पत्र लिख कर संपूर्ण वस्तुस्थिति से अवगत करा दिया. पत्र पढ़ते ही घर में तूफान जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई. मां ने रोरो कर आंखें लाल कर लीं. पिताजी क्रोध से भर कर दहाड़ उठे, ‘वह गंवई गांव की मछुआरिन क्या हमारे घर की बहू बनने के लायक है? आइंदा वहां गए तो तुम्हारी टांगें तोड़ कर रख दूंगा.’ उस के बाद पिताजी जबरदस्ती उन्हें अपनी फैक्टरी में ले जा कर काम में लगाने लगे. उधर, मां ने उन के रिश्ते की बात शुरू कर दी. एक दिन टूटीफूटी लिखावट में इरा का पत्र मिला. लिखा था, ‘मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं…आ कर ले जाओ.’ वे तड़प उठे व मातापिता की निगाहों से छिप कर नानी के गांव जा पहुंचे, पर उन के वहां पहुंचने से पूर्व ही इरा के घर वाले उसे ले कर कहीं लापता हो चुके थे. घर पर ताला लगा देख उन्होंने लोगों से पूछताछ की तो पता लगा कि अविवाहित बेटी के गर्भवती होने की बदनामी के डर से उन्होंने हमेशा के लिए गांव छोड़ दिया. वे पागलों की भांति इधरउधर भटक कर उस की तलाश करने लगे परंतु कहीं कुछ पता न चला. उधर, उन के मातापिता ने जबरदस्ती उन का विवाह बिरादरी की एक लड़की अलका के साथ संपन्न कर दिया. तभी अलका ने करवट बदली. बिस्तर हिलने से इरा की तसवीर फिसल कर फिर से नीचे जा गिरी. ‘‘सोए नहीं अभी तक?’’ अलका आंखें खोल कर असमंजस से पूछने लगी, ‘‘तुम अभी तक राजेश की चिंता में जाग रहे हो? क्या वह आया नहीं अभी तक?’’ अलका चिंतित हो उठ कर बैठ गई.

‘‘वह आ चुका है और कमरे में सो रहा है.’’‘‘तुम भी सो जाओ, नहीं तो बीमार पड़ जाओगे,’’ अलका ने कहा और फिर अलमारी खोल कर नींद की एक गोली ला कर उन्हें थमा दी.

पानी के साथ गोली निगल कर वे सोने की कोशिश करने लगे. अलका कहती रही, ‘‘जब बाप के पैर का जूता बेटे के पैरों में सही बैठने लगे तो बाप को बेटे के कार्यों में मीनमेख न निकाल कर, उसे मित्रवत समझाना चाहिए.’’ पर रामेंद्र का ध्यान कहीं और अटका हुआ था. सुबह बिस्तर से उठ कर वे स्नान, नाश्ते से निबट कर फैक्टरी जाने हेतु कार की तरफ बढ़े तो पाया कि राजेश अभी भी सो रहा है. अलका ने कहा कि वह राजेश को फैक्टरी भेज देगी, ताकि उस को जिम्मेदारी निभाने की आदत पड़ जाए. रामेंद्र जैसे ही फैक्टरी के दफ्तर में प्रविष्ट हुए तो वहां पहले से उपस्थित एक अनजान लड़की को बैठा देख कर चकित रह गए.

लड़की ने उठ कर उन्हें नमस्ते किया.

‘‘कौन हो तुम? क्या चाहती हो?’’ वे रूखेपन से बोले.

‘‘मेरा नाम श्वेता है. नौकरी पाने की उम्मीद ले कर आई हूं.’’

‘‘हमारे यहां कोई रिक्त स्थान नहीं है. तुम जा सकती हो,’’ कह कर वे अंदर जा कर काम देखने लगे. कुछ देर बाद जब वे किसी कार्यवश बाहर निकले तो लड़की को उसी अवस्था में बैठी देख कर हतप्रभ रह गए, ‘‘तुम गईं नहीं?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘मुझे राजेश ने भेजा है.’’

‘‘तुम उसे कैसे जानती हो?’’

‘‘मैं आप की बेटी त्रिशाला की सहेली हूं,’’ कहतेकहते श्वेता का स्वर आर्द्र हो उठा, ‘‘मैं अपने सौतेले बाप व सौतेले भाइयों से बेहद परेशान हूं. आप मुझे नौकरी दे कर मुझ पर बहुत बड़ा एहसान करेंगे. मैं व मेरी मां दोनों भूखों मरने से बच जाएंगी.’’

‘‘सौतेला बाप,’’ उन के मन में जिज्ञासा पनपी.

श्वेता ने कुछ झिझक के साथ कहा, ‘‘मेरी मां ने प्रेमी से धोखा खाने के पश्चात 2 बेटों के बाप, विधुर डेविड से शादी की थी. मैं मां के प्रेमी की निशानी हूं.’’

छि:छि:…रामेंद्र का मन घिन से भर उठा. कहीं अवैध संतान भी किसी की सगी होती है. जी चाहा अभी इस लड़की को धक्के दे कर फैक्टरी से बाहर निकाल दें पर श्वेता के चेहरे की दयनीयता देख उन की कठोरता बर्फ की भांति पिघल गई. उस का सूखा चेहरा बता रहा था कि उस ने कई दिनों से पेटभर कर भोजन नहीं किया है. सहानुभूतिवश उन्होंने श्वेता को थोड़े वेतन पर महिला श्रमिकों की देखरेख पर रख लिया. श्वेता उन के समक्ष नतमस्तक हो उठी व कुछ संकोच के साथ बोली, ‘‘सर, अपने बारे में मैं ने जो कुछ आप को बताया है उसे अपने तक ही सीमित रखें. राजेश व त्रिशाला को भी न बताएं.’’

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