भोजन की मेज पर राजेश को न पा कर रामेंद्र विचलित हो उठे, बेमन से रोटी का कौर तोड़ कर बोले, ‘‘आज फिर राजेश ने आने में देरी कर दी.’’
‘‘मित्रों में देरी हो ही जाती है. आप चिंता मत कीजिए,’’ अलका ने सब्जी का डोंगा उन की तरफ बढ़ाते हुए कहा.
‘‘राजेश का रात गए तक बाहर रुकना उचित नहीं है. 10 बज चुके हैं.’’
‘‘मैं क्या कर सकती हूं. मैं ने थोड़े ही उसे बाहर रुकने को कहा है,’’ अलका समझाने लगी.
‘‘तुम्हीं ने उस की हर मांग पूरी कर के उसे सिर चढ़ा रखा है. आवश्यकता से अधिक लाड़प्यार ठीक नहीं होता.’’
क्रोध से भर कर अलका कोई कड़वा उत्तर देने जा रही थी, पर तभी यह सोच कर चुप रही कि रामेंद्र से उलझना व उन पर क्रोध प्रकट करना बुद्धिमानी नहीं है. नाहक ही पतिपत्नी की मामूली सी तकरार बढ़ कर बतंगड़ बन जाएगी. फिर हफ्तेभर के लिए बोलचाल बंद हो जाना मामूली सी बात है. मन को संयत कर के वह पति को समझाने लगी, ‘‘राजेश बुरे रास्ते पर जाने वाला लड़का नहीं है, आप अकारण ही उसे संदेह की नजर से देखने लगे हैं.’’ रामेंद्र ने थोड़ा सा खा कर ही हाथ खींच लिया. अलका भी उठ कर खड़ी हो गई. त्रिशाला का मन क्षुब्ध हो उठा. आज उस ने अपने हाथों से सब्जियां बना कर सजाई थीं, सोचा था कि मातापिता दोनों की राय लेगी कि उस की बनाई सब्जियां नौकर से अधिक स्वादिष्ठ बनी हैं या नहीं. पर दोनों की नोकझोंक में खाने का स्वाद ही खराब हो गया. वह भी उठ कर खड़ी हो गई.
नौकर ने 3 प्याले कौफी बना कर तीनों के हाथों में थमा दी. परंतु रामेंद्र बगैर कौफी पिए ही अपने शयनकक्ष में चले गए और बिस्तर पर पड़ गए. बिस्तर पर पड़ेपड़े वे सोचने लगे कि अलका का व्यवहार दिनप्रतिदिन उन की तरफ से रूखा क्यों होता जा रहा है? वह पति के बजाय बेटे को अहमियत देती रहती है. रातरात भर घर से गायब रहने वाला बेटा उसे शरीफ लगता है. वह सोचती क्यों नहीं कि बड़े घर का इकलौता लड़का सभी की नजरों में खटकता है. लोग उसे बहका कर गलत रास्ते पर डाल सकते हैं. कुछ क्षण के उपरांत अलका भी शयनकक्ष में दाखिल हो गई. फिर गुसलखाने में जा कर रोज की तरह साड़ी बदल कर ढीलाढाला रेशमी गाउन पहन कर पलंग पर आ लेटी.
रामेंद्र ने निर्विकार भाव से करवट बदली. बच्चों के प्रति अलका की लापरवाही उन्हें कचोटती रहती थी कि ब्यूटीपार्लरों में 4-4 घंटे बिता कर अपने ढलते रूपयौवन के प्रति सजग रहने वाली अलका आखिर राजेश की तरफ ध्यान क्यों नहीं देती? अलका के शरीर से उठ रही इत्र की तेज खुशबू भी उन के मन की चिंता दूर नहीं कर पाई. वे दरवाजे की तरफ कान लगाए राजेश के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए बारबार दीवारघड़ी की ओर देखने लगे. डेढ़ बज के आसपास बाहर लगी घंटी की टनटनाहट गूंजी तो रामेंद्र अलका को गहरी नींद सोई देख कर खुद ही दरवाजा खोलने के उद्देश्य से बाहर निकले, पर उन के पहुंचने के पूर्व ही त्रिशाला दरवाजा खोल चुकी थी. राजेश उन्हें देख कर पहले कुछ ठिठका, फिर सफाई पेश करता हुआ बोला, ‘‘माफ करना पिताजी, फिल्म देखने व मित्रों के साथ भोजन करने में समय का कुछ खयाल ही नहीं रहा.’’ बेटे को खूब जीभर कर खरीखोटी सुनाने की उन की इच्छा उन के मन में ही रह गई क्योंकि राजेश ने शीघ्रता से अपने कमरे में दाखिल हो कर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था.
उस के स्वर की हड़बड़ाहट से वे समझ चुके थे कि राजेश शराब पी कर घर लौटा है. सिर्फ शराब ही क्या, कल को वह जुआ भी खेल सकता है, कालगर्ल का उपयोग भी कर सकता है. मित्रों के इशारे पर पिता की कठिन परिश्रम की कमाई उड़ाने में भी उसे संकोच नहीं होगा. उद्विग्नतावश उन्हें नींद नहीं आ रही थी. बारबार करवटें बदल रहे थे. फिर मन बहलाने के खयाल से उन्होंने किताबों के रैक में से एक किताब निकाल कर तेज रोशनी का बल्ब जला कर उस के पृष्ठ पलटने शुरू कर दिए. तभी किताब में से निकल कर कुछ नीचे गिरा. उन्होंने झुक कर उठाया तो देखा, वह इरा की तसवीर थी, जो न मालूम कब उन्होंने पुस्तक में रख छोड़ी थी. तसवीर पर नजर पड़ते ही पुरानी स्मृतियां सजीव हो उठीं. वे एकटक उस को निहारते रह गए. ऐसा लगा जैसे व्यंग्य से वह हंस रही हो कि यही है तुम्हारी सुखद गृहस्थ पत्नी, बेटा. कोई भी तुम्हारे कहने में नहीं है. तुम किसी से संतुष्ट नहीं हो. क्या यही सब पाने के लिए तुम ने मेरा परित्याग किया था… लगा, इरा अपनी मनपसंद हरी साड़ी में लिपटी उन के सिरहाने आ कर बैठ गई हो व मुसकरा कर उन्हें निहार रही हो. कल्पनालोक में गोते लगाते हुए वे उस की घनी स्याह रेशमी केशराशि को सहलाते हुए भर्राए कंठ से कह उठे, ‘सबकुछ अपनी पसंद का तो नहीं होता, इरा. मैं तुम्हें हृदय की गहराइयों से चाहता था, पर…’
इरा अचानक हंस पड़ी, फिर रोने लगी, ‘तुम झूठे हो, तुम ने मुझे अपनाना ही कहां चाहा था.’ उन की आंखों की कोरों से भी अश्रु फूट पड़े, ‘इरा, तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ पाओगी.’ दरअसल, रामेंद्र अपनी पढ़ाई समाप्त कर के छुट्टियां बिताने अपने ननिहाल कलकत्ता के नजदीक एक गांव में गए. एक दिन जब वे नहर में नहाने गए तो वहां कपड़े धोती हुई सांवली रंगत की बड़ीबड़ी आंखों वाली इरा को ठगे से घूरते रह गए. वह उन की नानी के घर के बराबर में ही रहती थी. दोनों घरों में आनाजाना होने के कारण रामेंद्र को उस से बात करने में कोई मुश्किल पेश नहीं आई. सभी गांव वालों का नहानाधोना नहर पर होने के कारण वहां मेले जैसा दृश्य उपस्थित रहता था. वे अपने हमउम्र साथियों के साथ वहीं मौजूद रहते थे, इधरउधर घूम कर प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लूटते रहते. इरा नहर में कपड़े धो कर जब उन्हें आसपास के झाड़झंकार पर सूखने के लिए डालने आती तो वहां पर पहले से मौजूद रामेंद्र चुपके से उस की तसवीरें खींच लेते. कैमरे की चमक से चकित इरा उन की तरफ घूरती तो वे मुंह फेर कर इधरउधर ताकने लगते. इरा के आकर्षण में डूबे वे जब बारबार नानी के गांव आने लगे तो सब के कान खड़े हो गए. लोग उन दोनों पर नजर रखने लगे, पर दुनिया वालों से अनजान वे दोनों प्रेमालाप में डूबे रहते.