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ज्योति ने तेजी से साइकिल के ब्रेक लगाते हुए अपने को टक्कर से बचाने के लिए हैंडल बाईं तरफ काटा था और मोटरसाइकिल वाले ने अपने बाएं काटते हुए ब्रेक पर पैरों का दबाव बढ़ा दिया था, जिस से दोनों के वाहन टकराए नहीं, गिरे भी नहीं.

दोनों पैरों को सड़क पर टेकते हुए ज्योति ने मोटरसाइकिल सवार को गुस्से से देखा, कुछ कहने जा ही रही थी कि रुक गई. हरीश था.

ज्योति से नजरें टकराते ही उस के चेहरे पर अजीब सी चमक उभर आई. पैरों के जोर से अचानक बंद हो चुकी अपनी बाइक को पीछे कर के ज्योति के करीब लाता हुआ बोला, "ओह, तो तुम हो... अगर मैं इस समय कुछ और सोच रहा होता, तो वो भी मुझे मिल जाता..."

ज्योति जानती थी कि चलतीफिरती सड़क पर वह कोई छिछोरी हरकत नहीं करेगा, इसलिए बड़ी सहजता से उस ने पूछा, "क्या सोच रहे थे?"

"यही कि कुछ दिनों बाद तो नौकरी ज्वाइन करने जाना ही है. और काश, जाने से पहले तुम से एक मुलाकात कर के अपनी गलती की माफी मांग सकूं.

"मैं जानता हूं कि मेरी उस बात को ले कर तुम अभी तक मुझ से नाराज हो."

ज्योति ने वहां ज्यादा देर यों साइकिल के, इधरउधर पैर कर के सड़क पर खड़े रहना उचित नहीं समझा. अचानक वह बोली," नाराज तो बहुत हूं, पर कल तुम भैया से मिलने के बहाने आ सकते हो."

इतना कह कर वह उचक कर साइकिल की गद्दी पर बैठी और घर की तरफ बढ़ गई.

हरीश ने भी बाइक स्टार्ट की और अपने घर की तरफ चला गया. ज्योति ने उस से बात कर ली थी, इसलिए उस की खुशी देखते ही बनती थी.

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