लेखक- राकेश भ्रमर
अनिल के स्वर में खीझ उभर आई, ‘‘यह क्या है रीना? यह बेरुखी क्यों?’’
‘‘मेरा मन नहीं है,’’ रीना ने ढिठाई से कहा.
‘‘मन नहीं है? यह कौन सी बात हुई? इस बात को तुम सीधे ढंग से, प्यार से मुसकरा कर कह सकती थी. तुम्हारा व्यवहार बता रहा है कि कोई और बात है?’’
रीना ने अपना मुंह अनिल की तरफ कर के कहा, ‘‘मैं एक इंसान हूं, मेरा भी मन है. जब मेरी इच्छा होगी. तभी तो कुछ करूंगी. बिना इच्छा के कोई काम नहीं होता.’’
‘‘यह अचानक मन और इच्छा कहां से आ गए. तुम तो मुझ से ढंग से बात भी नहीं कर रही हो. मैं तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती तो नहीं कर रहा. नहीं मन है, तो नहीं करेंगे, परंतु बात तो ठीक से करो. तुम्हें कोई परेशानी हो, तो बताओ,’’ उस ने उसे अपनी तरफ खींचा.
रीना नाटक तो कर रही थी, परंतु मन में एक डर भी बैठ गया था कि कहीं अनिल नाराज न हो जाए, सारा बनाबनाया खेल बिगड़ जाएगा. उस ने कहा, ‘‘मैं आप की कौन हूं?’’
अनिल का मुंह एक बार फिर से खुल गया, ‘‘क्या कह रही हो तुम? मेरी समझ में तुम्हारी पहेलियां नहीं आ रही हैं? जरा, खुल कर बताओ, तुम्हें क्या हुआ है? और तुम क्या चाहती हो?’’
रीना ने उस के सीने पर हाथ फिराते हुए कहा, ‘‘मैं आप की पत्नी हूं न. तो फिर इस घर में मुझे पत्नी के सारे अधिकार चाहिए.’’
‘‘मतलब...? तुम्हें कौन से अधिकार चाहिए?’’ उस की हैरानगी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन