लेखक-नम्रता सरन “सोना”
आशी सोफे पर सिर टिका कर बैठ गई. वह सोचने लगी कि यह कैसा समय चल रहा है… इस महामारी से देशदुनिया को कब नजात मिलेगी? न जाने कितनी जिंदगियां और लीलेगा यह वायरस? जिंदगी कब पटरी पर आएगी…बच्चों के स्कूल, औफिस, सभीकुछ कब तक सामान्य हो पाएगा और तब तक कितना नुकसान हो जाएगा? घर की व्यवस्थाएं और देश की अर्थव्यवस्था सभी चरमरा गई हैं…
शायद सब जल्दी ठीक हो जाए, इसी उम्मीद के साथ आशी उठ कर पापा को चैक करने गई. वे सो रहे थे, इधर नंदिताजी की भी नींद लग गई थी.
आशी ने किचन में जा कर खुद के लिए कौफी बनाई ताकि कुछ ऐनर्जी मिले.
थोड़ी देर में नंदिताजी भी उठ कर आ गईं. दोनों बैठ कर बातें करती रहीं.वक्त जैसे थम गया था, पलपल आगे बढ़ने में जैसे सदियां लग रही थीं, लेकिन इंतजार के अलावा अन्य दूसरा कोई रास्ता न था.
अगले दिन तक पापा की स्थिति और बिगड़ चुकी थी. खांसी भी बढ़ चुकी थी. तेज बुखार और सांस लेने में बहुत दिक्कत हो रही थी. नंदिता और आशी घरेलू उपचार भी करती रहीं. मन तो हो रहा था कि अभी अस्पताल में भरती करवा दें, लेकिन लोगों से, न्यूज चैनलों से अस्पताल में भरती मरीजों की छिछालेदर सुनसुन कर वे दोनों कोई फैसला नहीं कर पा रही थीं.
जैसेतैसे रात के 9 बजे. अमित आ गया. पापा की ऐसी स्थिति देख कर वह भी घबरा गया. फिर अपने कुछ दोस्तों, परिचितों से बात कर के यही निर्णय लिया कि पापा को फौरन अस्पताल में भरती किया जाए. अब सारे टैस्ट वहीं होते रहेंगे.
“मम्मी, आप और आशी घर पर ही रुकें, मैं पापा को वेदांता में ऐडमिट करवाता हूं,” अमित बोला.
“लेकिन बेटा…” नंदिता ने कुछ बोलना चाहा.
“मम्मी, टैंशन मत कीजिए, यह सब अफवाहें हैं कि अस्पताल में भरती कराने के बाद बचना मुश्किल हो जाता है. अस्पताल में सही इलाज मिलेगा, पापा जल्दी ही अच्छे हो कर आ जाएंगे, विश्वास रखो आप,” अमित ने नंदिता को आश्वासन दिया.
“बेटा, यहां नजदीक के किसी अस्पताल में भरती करवा दो न,” नंदिता बोली.
“भैया, आप अपनी गाड़ी से ही ले जा रहे हो न या ऐंबुलैंस बुलवाएं?” आशी ने पूछा.
“हां, मैं पापा की गाड़ी से ही जाऊंगा, क्योंकि आते समय मुझे जरूरत होगी,” अमित ने कहा.
“आइए पापा, हम आप को अस्पताल ले जा रहे हैं ताकि आप जल्दी से ठीक हो कर घर आएं,” अमित ने पापा को सहारा दे कर उठाते हुए कहा.
“बेटा, मुझे नहीं लगता कि अब मैं घर वापस आ पाऊंगा,” पापा हताशा भरे स्वर में बोले.
“क्यों नहीं आएंगे, बिलकुल आएंगे, प्रौपर इलाज होगा और आप झट से अच्छे हो जाएंगे, बी पौजिटिव… ओके पापा…” कह कर अमित ने उन्हें उठाया फिर आशी और अमित ने मिल कर पापा को गाड़ी में पीछे लिटा दिया. अमित अस्पताल के लिए निकल पड़ा.
अस्पताल में ऐडमिशन की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अमित को वहां से निकलना पड़ा, क्योंकि मरीज के पास किसी के रुकने या मिलने की सख्त मनाही थी. डाक्टरों ने बता दिया था कि आगे की अपडैट अब फोन पर ही पता करते रहिए, अमित भारी मन से घर लौट आया. घर पहुंच कर नंदिता और आशी को भी सारी स्थिति से अवगत करवाया.
“मम्मी, आप बिलकुल टैंशन मत लीजिए, वहां सभी व्यवस्थाएं बढ़िया थीं, अभी पापा को आईसीयू में रखा है, कल सारे टैस्ट हो जाएंगे, उस के बाद स्थिति क्लीयर होगी, अब आप भी आराम कीजिए, रात काफी हो गई है,” अमित ने मां से कहा.
“ठीक है बेटा, मेरे भी हाथपैरों में बहुत दर्द है, हरारत सी महसूस हो रही है, पेनकिलर खा कर सो जाती हूं. चलो बेटा, आशी तुम भी आराम कर लो,” नंदिताजी ने उठते हुए कहा.
सुबह साढ़े 10 बजे के करीब पैथोलौजिस्ट ने पापा की रिपोर्ट व्हाट्सऐप पर भेज दी. रिपोर्ट पौजिटिव थी. अब जरूरी था कि वे तीनों भी टैस्ट करवाएं, क्योंकि तीनों ही पापा के संपर्क में आए थे. उन तीनों का भी टैस्ट हुआ. तीनों ही पौजिटिव आए, हालांकि 6% आया था, इसलिए तीनों को होम क्वारंटाइन होना पड़ा.
उधर अस्पताल में पापा को वैंटिलैटर पर शिफ्ट कर दिया गया और घर में तीनों का इलाज शुरू हो गया. 3-4 दिन घरेलू इलाज भी करते रहे.
“भैया, मम्मी की हालत तो बिगड़ रही है,” आशी बोली.
“हां आशी, सांस लेने में मुझे दिक्कत महसूस हो रही है. ऐसा लग रहा है कि मम्मी और मुझे भी अस्पताल में कहीं भरती न होना पङे,” अमित कुछ चिंता में बोला.
“भैया, ऐसा है तो देर क्यों करें, आप और मम्मी यहीं गाजियाबाद के किसी अस्पताल में ऐडमिट हो जाइए, जितना जल्दी कदम उठाएंगे, उतना ही अच्छा,” आशी बोली.
“तुम अकेले रह लोगी?”अमित ने पूछा.
“हां भैया, डोंट वरी, मैं रह लूंगी, वैसे भी मेरी तबियत अभी थोड़ी ठीक है,” आशी ने कहा.
“ठीक है, मैं मम्मी से बात करता हूं,” अमित बोला.
आखिरकार नंदिता और अमित अस्पताल में भरती हो गए, आशी घर पर ही आईसोलैट थी.
उधर आशी के घर जतिन बच्चों की देखभाल कर रहा था. अमित की पत्नी और बच्चे कानपुर में थे. पूरा परिवार जैसे एक जंग लड़ रहा था.इतनी बैचेनी जिंदगी में कभी महसूस नहीं की थी.