अस्पताल ज्यादा दूर नहीं था, पहुंचते ही उन्हें ऐडमिट कर लिया गया. घाव में टांके लगाने के लिए उन्हें औपरेशन थिएटर में ले जाया जाने लगा तब उस की घबराहट देख कर रामू उसे दिलासा देता हुआ बोला, ‘मेमसाहब, धीरज रखिए, सब ठीक हो जाएगा.’
उस की बात सुन कर भी वह सहज नहीं हो पा रही थी, उस के चेहरे पर उदासी साफ झलक रही थी. तभी सिस्टर ने आ कर कहा, ‘चोट लगने से मरीज के माथे के पास की एक नस कट गई है जिस के कारण ब्लीडिंग काफी हो गई है. ब्लड देने की आवश्यकता पड़ेगी, यहां तो कोई ब्लडबैंक नहीं है, इस के लिए शहर जाना पड़ेगा पर इस में शायद देर हो जाए.’
‘सिस्टर, आप कुछ भी कीजिए पर मांजी को बचा लीजिए,’ अनुज्ञा की स्वर में विवशता आ गई थी. अमित की बहुत याद आ रही थी. काश, उन की बात मान कर यहां न आती तो शायद यह सब न झेलना पड़ता.
‘आप डाक्टर साहब से बात कर लीजिए.’
डाक्टर साहब से बात की तो उन्होंने कहा, ‘स्थिति गंभीर है. अगर आप की स्वीकृति हो तो हम फ्रैश खून चढ़ा
देंगे वरना...’
‘आप मेरा खून चैक कर लीजिए डाक्टर साहब पर मांजी को बचा लीजिए.’
‘मेरा भी, डाक्टर साहब,’ रामू ने कहा.
आखिर रामू का खून मांजी के खून से मैच हो गया. अनुज्ञा से स्वीकृतिपत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया. भरे मन से उस ने उस पर हस्ताक्षर कर दिए क्योंकि इस के अलावा कोई चारा न था.
मांजी को जब रामू का खून चढ़ाया जा रहा था तब वह सोच रही थी, जिस आदमी को मांजी सदा हीन और अछूत समझ कर उस का तिरस्कार करती रही थीं वही आज उन के प्राणों का रक्षक बन गया है.