प्रहर अभी कुरसी पर बैठ भी नहीं पाया था कि श्रुति ने टोका, ‘‘प्रहर, तुम्हें कल छुट्टी लेनी थी तो अपने कंप्यूटर का पासवर्ड ही बता जाते. तुम्हारा मोबाइल भी आउट औफ कवरेज बता रहा था.’’
‘‘शायद आप ने ईशा से पूछा नहीं,’’ अपनी सीट पर बैठते हुए प्रहर ने कंप्यूटर के मौनीटर का स्विच औन करते हुए कहा, ‘‘आप तो आते ही सिर्फ काम की बात करने लगती हैं. यह भी नहीं पूछतीं कि आखिर मैं आया क्यों नहीं था.’’
‘‘ओके, सौरी,’’ अपनी टेबल के नजदीक पहुंच कर श्रुति ने कहा, ‘‘क्या प्रौब्लम थी जो कल नहीं आए?’’
‘‘पिताजी की तबीयत खराब हो गई थी, उन्हें अस्पताल ले कर चला गया था.’’
‘‘अब ठीक हैं न?’’
‘‘ठीक हैं, तभी तो आया हूं.’’
‘‘कल का सारा पैंडिंग काम हो गया है प्रहर, इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. अगर आज जल्दी जाना हो तो चले जाना.’’
‘‘थैंक्यू श्रुति, आप मुझे हमेशा टैंशन फ्री रखती हैं. लेकिन हमें परमानैंट टैंशन देने वाले औफिस मैनेजर मिस्टर शिंदे के बेटे की शादी की रिसैप्शन पार्टी में कल शाम को चलेंगी या नहीं?’’
प्रहर की इस बात के जवाब में श्रुति आहिस्ता से बोली, ‘‘तुम्हें तो पता है प्रहर, कि मैं इस तरह की किसी पार्टी में जाना पसंद नहीं करती.’’
‘‘तो फिर कल तुम्हें किस पार्क में जाना है, यह बता दो तो मैं वहीं पहुंच जाऊंगा.’’
‘‘मुझे इस तरह का मजाक बिलकुल पसंद नहीं है प्रहर.’’
‘‘नाराजगी तुम्हारे चेहरे पर जरा भी अच्छी नहीं लगती श्रुति.’’
‘‘मेरे चेहरे पर जो है इस के अलावा अब दूसरा कुछ अच्छा भी कैसे लगेगा,’’ कांपते स्वर में श्रुति ने कहा.
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