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‘‘यह तुम क्या कह रहे हो, प्रहर?’’ श्रुति का दिल धड़क उठा, ‘‘तुम होश में तो हो?’’

‘‘मैं पूरी तरह होश में हूं और जो कह रहा हूं वह खूब सोचसमझ कर कह रहा हूं.’’

श्रुति का चेहरा शर्म से सुर्ख हो गया. उस ने नजरें झुका कर कहा, ‘‘लेकिन मैं किसी से शादी के लिए तैयार नहीं हूं. मैं अपनी इस एकाकी जिंदगी से संतुष्ट हूं.’’

‘‘तुम्हें किसी दूसरे से नहीं, मुझ से शादी करनी है. तुम्हारी इसी संतुष्टि में मैं सुख भरना चाहता हूं.’’

‘‘मुझ पर इस तरह अचानक दया दिखाने की कोई वजह?’’

‘‘मेरे प्रेम को दया कह कर उस का अपमान मत करो श्रुति,’’ प्रहर ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार करता हूं श्रुति. मैं तुम्हारे शरीर से नहीं, तुम्हारे पूरे व्यक्तित्व और अस्तित्व से प्यार करता हूं. मेरी इस चाहत को किसी भी तरह के दाग का ग्रहण नहीं लग सकता, यह खोखली नहीं है.’’

श्रुति ने तमाम दलीलें दीं, लेकिन प्रहर ने उसे मना ही लिया. इस के बाद श्रुति ने मम्मीपापा से बात की. वे तो चाहते ही थे कि उन की बेटी की शादी हो जाए. बड़ी ही सादगी से श्रुति और प्रहर का विवाह हो गया. इस तरह दोनों ने वैवाहिक जीवन का नया अध्याय शुरू किया.

नया घर, नया वातावरण और ताजाताजा प्रेमसंबंध. श्रुति के मन में अब तक अपने प्रति जो नफरत और कुंठा थी वह देखतेदेखते गायब हो गई. प्रहर की मम्मी का प्रेम उसे अपनी मम्मी की याद दिला देता था. पापा अवधेश अपने में ही मस्त रहते थे. उन्हें किसी बात की चिंता नहीं रहती थी. वे दोस्तों के साथ ताश खेलते रहते थे. घर में आने वाला पैसा वे जुए में उड़ा देते थे. नौकरी में श्रुति प्रहर के साथ थी ही, घर में भी हर तरह से उस का साथ निभा रही थी. श्रुति के जीवन में देर से ही सही, लेकिन सुख का सूरज उदय हो चुका था.

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