इरा ने कल ही तो उन से पूछा था, ‘‘बाबाजी, वहां अकेले आप को डर नहीं लगता.’’सुनते ही वह हंस दिए थे, ‘‘डर... नहीं तो,’’ कहतेकहते उन्हें चैतू और कृष्णा की याद आ गई थी. ये दोनों उन के पुराने शिष्य हैं. उसी कसबे में इन का ब्याह हुआ है, घरबार है. जब से पद्मा नहीं रही, कृष्णा उन का पिता समान ध्यान रखती है और चैतू बाजार से सामान आदि ला दिया करता है. जब भी जी घबराता है, वह कृष्णा या चैतू के घर चले जाते हैं. दोनों कैसेकैसे भाग कर उन का सत्कार करते हैं. कृष्णा गिलास में चाय भर लाती है और तस्तरी में मिठाई या फल. ब्राह्मïण हैं, अत: कप में चाय नहीं पीते. अपने हाथ से उठाउठा कर आग्रहपूर्वक देती है. तब भी उन्हें पद्मा बहुत याद आती है. उस की मृत्यु के बाद उतने आग्रहपूर्वक खिलाने वाली बस कृष्णा ही तो बची है. वह हमेशा से जातिपांति के खिलाफ थे और उसे गांव के बहुत से ऊंची जाति के लोग उन की पीठ पीछे उन्हें बुराभला भी कहते थे. पर चूंकि उन की संगीत पर पकड़ थी, कोई मुंह पर कुछ न कह पाता था.
राकेश आ कर दूसरी कुरसी पर बैठ गया था. बहू भी मोबाइल हाथ में लिए आ बैठी. थोड़ी देर वह राकेश से वकालत की पूछताछ करते रहे, फिर हंस कर बोले, ‘‘अच्छा, राकेश, तुम्हें अब संगीत का अभ्यास तो रहा नहीं होगा? इन बच्चों को सिखा देते.’’
राकेश ने पत्नी की ओर देखा और सगर्व बोला, ‘‘अपने काम से छुट्टी कहां मिलती है, बाबूजी. वैसे, इरा गिटार सीख रही है, एक म्यूजिक टीचर आते हैं सिखाने.’’