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उन्होंने सोचा. एक पल तो लगा कि सब उन्हें एक अजूबे जैसी दृष्टि से निहार रहे हैं कि भला यह देहाती सा आदमी क्या गायक हो सकता है. इरा की इस हरकत का प्रभाव यह हुआ था कि राकेश को भी अपने साथियों सहित उस कमरे में आना पड़ा था और कहना पड़ा था, ‘‘यह हमारे बाबूजी हैं. अभी कुछ दिन पहले ही यहां आए हैं. पैर में कुछ तकलीफ है. इसी से यहीं बैठे रह गए.’’

सब उन को अभिवादन कर रहे थे. राकेश ने न्यायाधीश महोदय को भी उन से बड़ी ही विनम्रता से परिचित करवाया. उन्होंने चश्मे से आंख उठा कर देखालगायह चेहरा कहीं देखा है-कहां?

न्यायाधीश उन्हें ध्यान से देखते रहेफिर पता नहीं क्या हुआइतनी भीड़ के बीच में भी शायद अपनी हैसियत भूल और लपक कर उन के चरणों में झुक गए, ‘‘आप ने पहचाना नहींगुरुजी?’’

उन का कंठ गदगद हो उठा, ‘‘बसएक ही आवाज में पहचान लियाबेटा. तू तो निहाल डोम का बेटा चैतू है न?’’ कहतेकहते उन की आंखें डबडबा आईं. जिन से बचाने के लिए राकेश ने उन्हें कमरे में अलग बैठाया थावही सब के सामने उन के चरणों पर झुक गए थे. न्यायाधीश महोदय उन के पास ही पलंग पर पांयते बैठ गए और हाथ थाम कर बोले, ‘‘गुरुजीपलट कर कभी आप के दर्शन करने न जा सका. लेकिन भूला नहीं कभी. जब भी किसी संगीत सभा में गयाआप को सब से पहले याद किया. मैं ने संगीत की शिक्षा भी ली और कानून की. आप का पढ़ाने का ढंग ऐसा था कि शहर आ कर जो किताब उठाता वह दिल में बैठ जाती.’’

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