‘‘‘किरण, क्यों नहीं तुम अपनी मां को पत्र लिख कर मन की बातें कह देती.’
‘‘‘मैं ने बिक्की को बांहों में भर कर कहा, थैंक्यू, थैंक्यू बिक्की.’
‘‘मेरी प्यारी मां...
‘‘क्यों फिर आज तुम ने वही किया जो 10 वर्ष पहले किया था. तुम्हें याद होगा, 10 वर्ष पहले सब के सामने मेरे हाथ से तुम्हारे दुपट्टे का छोर फिसलताफिसलता छूट गया, तुम बेबसी से देखती रहीं. किंतु आज तो तुम चोरीचोरी अपना छोर छुड़ा कर चली गई हो. अपनी किरण को एक बार गौर से देखा तक नहीं. तुम्हें नहीं पता, तुम्हारी किरण तो अपनी मां और भैया सूरज को हर रोज चोरीचोरी देख लेती थी टौयलट जाने के बहाने ‘‘मां शायद तुम्हें याद होगा, एक दिन जब आप की और मेरी नजरें स्कूल में टकराई थीं, आप अनजाने से मुझे देखना भूल गई थीं. तब से मैं हर रोज चोरीचोरी सब की नजरों से छिप कर तुम्हारी एक झलक देखने की प्रतीक्षा करती रही. लेकिन मुझे कभी भी आप के पूरे चेहरे की झलक नहीं मिली. बस, यही एहसास ले कर जीती रही कि मेरी भी मां है.
‘‘मां , मेरी प्यारी मां, मुझे आप से कोई शिकायत नहीं है. मैं तो आप की हिम्मत और साहस की दाद देती हूं. आप ने भ्रूण हत्या के बजाय मुझे इस दुनिया में लाने की हिम्मत दिखाई. हर रोज नानी के कड़वेकड़वे कटाक्ष सुने. मेरा मन जानता है, प्यार तो तुम अपनी किरण को बहुत करती थीं. न जाने तुम्हारी क्याक्या मजबूरियां रही होंगी. मैं पुरानी धुंधली यादों के सहारे आज तक कभी हंस लेती हूं, कभी रो लेती हूं. मैं जानती थी कि कोई भी मां इतनी कठोर नहीं हो सकती और न ही जानबूझ कर ऐसा कर सकती है.