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‘‘मिस हैलन, आप नहीं जानतीं, मां की एक झलक ने मुझे कई वर्ष पीछे धकेल दिया. अपनी कल्पना में मैं आज भी उन पलों में लौट जाती हूं जब मैं बहुत छोटी थी और मेरे पास मां थी. तब सबकुछ था. कैसे वह मेरी उंगली पकड़ स्कूल ले जाती. वापसी में आइसक्रीम, चौकलेट ले कर देती. कैसे रास्ते में मैं उन के साथ लुकाछिपी खेलती. कभी कार के पीछे छिप जाती, कभी पेड़ के पीछे. अपनी जिद पूरी करवाने के लिए वहीं सड़क पर पैर पटकतीपटकती बैठ जाती. आज भी उन दिनों को याद कर शिथिल, निढाल हो जाती हूं मैं. जब दुखी होती हूं तो दृश्य आंखों के सामने रीप्ले होने लगता है. 15 दिसंबर, 1995 को जब ‘सोशल सर्विसेज’ वाले मुझे यहां लाए थे, उस दिन मेरी मां के दुपट्टे का छोर मेरे हाथों से खिसकतेखिसकते सदा के लिए छूट गया था. ‘‘क्रिसमस की छुट्टियों के समाप्त होने का इंतजार मुझे बड़ी ब्रेसब्री से रहता. मन में मां की झलक पाने की लालसा, भाई को देखने की उमंग उमड़ने लगी. इसी धुन में अकसर मैं स्कूल के किसी छिपे हुए कोने से मां और भाई को निहारती रहती. छोटा भाई सूरज पैर पटकने में मुझ पर गया था, मेरा भाई जो ठहरा. सूरज के प्ले टाइम में मैं अपनी कक्षा में न जा कर उस से बातें करती, उसे छूने की कोशिश करती. यही सोच कर कि मां ने इसे छुआ होगा. उस में मां की खुशबू ढूंढ़ती. जब बिक्की कहती कि सूरज की आंखें बिलकुल तुम जैसी हैं, मुझे बहुत अच्छा लगता था. मां यह नहीं जानती थीं कि मैं भी इसी स्कूल में हूं. यह सिलसिला चलता रहा. धीरेधीरे मां से मेरी नाराजगी प्यार में बदल गई. मां से भी भला कोई कब तक नाराज रह सकता है. उन्हें बिना देखे मन उदास हो जाता. इतने बड़े संसार में एक वही तो थीं, मेरी बिलकुल अपनी. एक दिन अचानक मां और मेरी नजरें टकराईं. मां बड़ी बेरुखी से मुझे अनदेखा कर आगे बढ़ गईं.

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