अच्छी बात है. मैं अपने पापा को भेज दूंगा,’ सौरभ उठ कर नमस्ते कर के चल पड़ा.
रविवार को वृद्घ ज्योतिषी आ पहुंचे. कमरे में मौन छाया था. माया और सौरभ की कुंडली सामने बिछा कर लंबे समय तक गणना करने के बाद ज्योतिषी ने सिर उठाया, ‘रमाकांत, दोनों कुंडलियां तनिक मेल नहीं खातीं. कन्या पर गंभीर मंगलदोष है. लड़के की कुंडली तो गंगाजल की तरह दोषहीन है. मंगलदोष वाली कन्या का विवाह उसी दोष वाले वर के साथ होना ही श्रेष्ठ होता है. तुम्हारी कन्या का विवाह इस वर के साथ होने पर 4-5 बरसों में ही वर की मृत्यु हो जाएगी.’ पंडितजी के शब्द सब को दहला गए.
सौरभ के पापा सिर झुकाए चले गए. परदे की ओट में बैठी माया जड़ हो गई. पंडितजी के शब्द मानो कोई माने नहीं रखते. नहीं, वह कुछ नहीं सुन रही थी. यह तो कोई बुरा सपना है. माया खयालों में खो गई.
‘दीदी, बैठेबैठे सो रही हो क्या? पापा कब से बुला रहे हैं तुम्हें.’ छोटी बहन ने माया को झकझोर कर उठाया.
माया बोझिल कदमों से पापा के सामने जा खड़ी हुई थी. कमरे में उन की आवाज गूंज उठी, ‘माया, ज्योतिषी ने साफ कह दिया है. दोनों जन्मकुंडलियां तनिक भी मेल नहीं खातीं. यह विवाह हो ही नहीं सकता. अनिष्ट के लक्षण स्पष्ट हैं. भूल जाओ सबकुछ.’
मां का दबा गुस्सा फूट पड़ा था, ‘लड़की मांबाप का लिहाज न कर स्वयं वर ढूंढ़ने निकलेगी तो अनर्थ नहीं तो और क्या होगा? कान खोल कर सुन लो, उस से मेलजोल बिलकुल बंद कर दो. कोई गलत कदम उठा कर उस भले लड़के की जान मत ले लेना.’ कहनेसुनने को अब रह ही क्या गया था. माया चुपचाप अपने कमरे की ओर लौट आई थी. माया लौन में बैठी पत्रिका पढ़ रही थी. मन पढ़ने में लग ही नहीं रहा था. माया अपने अंदर ही घुटती जा रही थी. देखतेदेखते 3 माह गुजर गए. न सौरभ का कोई फोन आया, न मिलने की कोशिश ही की. क्या करे वह. सौरभ कोलकाता में नई नौकरी के लिए जा चुका था. वह कशमकश में थी. वह नहीं विश्वास करती थी ज्योतिषी की भविष्यवाणी पर. ज्योतिषी की बात पत्थर की लकीर है क्या? वह सौरभ से विवाह जरूर करेगी. लेकिन अगर पंडितजी की वाणी सही निकल गई तो?