‘‘परंतु मुझे यह नौकरी नहीं करनी है,’’ अदिति ने यह बात थोड़ी ऊंची आवाज में कही. आंखों के आंसू गालों पर पहुंचने के लिए पलकों पर लटक आए थे.
डा. हिमांशु ने मुंह फेर कर कहा, ‘‘अदिति, अब तुम्हारे लिए यहां काम नहीं है.’’
‘‘सचमुच?’’ अदिति ने उन के एकदम नजदीक जा कर पूछा.
‘‘हां, सचमुच,’’ अदिति की ओर देखे बगैर बड़ी ही मृदु और धीमी आवाज में डा. हिमांशु ने कहा, ‘‘अदिति, वहां वेतन बहुत अच्छा मिलेगा.’’
‘‘मैं वेतन के लिए नौकरी नहीं करती,’’ अदिति और भी ऊंची आवाज में बोली, ‘‘सर, आप ने मुझे कभी समझा ही नहीं.’’
वे कुछ कहते, उस के पहले ही अदिति उन के एकदम करीब पहुंच गई. दोनों के बीच अब नाममात्र की दूरी रह गई थी. उस ने डा. हिमांशु की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘सर, मैं जानती हूं, आप सबकुछ जानतेसमझते हैं. प्लीज, इनकार मत कीजिएगा.’’
अदिति के आंसू आंखों से निकल कर कपोलों को भिगोते हुए नीचे तक बह गए थे. वह कांपते स्वर में बोली, ‘‘आप के यहां काम नहीं है? इस अधूरी पुस्तक को कौन पूरी करेगा? जरा बताइए तो, चार्ली चैपलिन की आत्मकथा कहां रखी है? बायर की कविताएं कहां हैं? विष्णु प्रभाकर या अमरकांत की नई किताबें कहां रखी हैं...?’’
डा. हिमांशु चुपचाप अदिति की बातें सुन रहे थे. उन्होंने दोनों हाथ बढ़ा कर अदिति के गालों के आंसू पोंछे और एक लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारे आने के पहले मैं किताबें ही खोज रहा था. तुम नहीं रहोगी तो भी मैं किताबें ढूंढ़ लूंगा.’’
अदिति को लगा कि उन की आवाज यह कहने में कांप रही थी.