“मैं कम पढ़ीलिखी हुई हूं, आप से विनती करती हूं कि आप अपने सपने को पूरा करने के लिए मेरी बेटी की बलि मत चढ़ाइए. सपने तो सपने ही होते हैं. पंखुरी को अपने सपनों की उड़ान भरने दीजिए.”
अवधेश जी की आंखें गीली हो गईं थीं. वे बोले, “तुम मुझ से कम पढ़ीलिखी हो, लेकिन कहीं अधिक समझदार हो. ये सब बातें तुम ने मुझ से पहले क्यों नहीं कहीं. शायद, मेरी अक्ल पर पड़ा हुआ परदा हट जाता. पंखुरी को होश में आने दो, मैं उस से माफी मांग लूंगा.”
डा. मणि आईसीयू में ही बैठी हुई पंखुरी के चेहरे पर नजर लगाए हुए थीं. उन्होंने उस को इंजैक्शन लगाया, मौनिटर पर लगातार उन की निगाहें टिकी थीं. फिर वे उठ कर अपने केबिन में बैठ गईं. परंतु मन में अत्यंत बेचैनी महसूस कर रही थीं वे.
अनजाने में उस प्यारी बच्ची में वे अपनी आद्या की सूरत देख रही थीं. वे भी तो हर समय आद्या को डांटतीडपटती रहती हैं.
एक दिन वह उन से बोली थी कि, ‘मौम, मैं डाक्टर नहीं बनना चाहती. मुझे आप की लाइफ नहीं पसंद. मुझे मरीज के पास जाने से उबकाई आती है.’
‘पागल है तू, इतना बड़ा नर्सिंग होम तुम्हारे लिए ही तो बनवाया है. तेरे सिवा मेरे लिए इस दुनिया में मेरा कौन है.’
‘नो, मौम, आई डोन्ट लाइक,’ कहती हुई वह तेजी से अपने कमरे में चली गई थी. यह बात उस समय की है , जब वह क्लास 9वीं में थी. वे आद्या के ख़यालों में खो गई थीं, तभी सिस्टर की आवाज से उन की तंद्रा भंग हुई. लीला खुशी से भागती हुई आई, ‘डा. वह लड़की अपनी पलकें फड़फड़ा रही है.’