सुमित्रा की आंखें खुलीं तो देखा कि दिन बहुत चढ़ आया था. वह हड़बड़ा कर उठी. अभी सास की तीखी पुकार कानों में पड़ेगी. ‘अरी ओ महारानी, आज उठना नहीं है क्या? घर का इतना सारा काम कौन निबटाएगा? इतनी ही नवाबी थी तो अपने मायके से एकआध नौकर ले कर आना था न.’
फिर उन का बड़बड़ाना शुरू हो जाएगा. ‘उंह, इतने बच्चे जन कर धर दिए. इन को कौन संभालेगा? इन का बाप सारी चिंता छोड़ कर परदेस में जा बैठा है. जाने कौन सी पढ़ाई है शैतान की आंत की तरह जो खत्म ही नहीं हो रही और अपने परिवार को ला पटका मेरे सिर. हम पहले ही अपने झंझटों से परेशान हैं. अपनी बीमारियों से जूझ रहे हैं, अब इन को भी देखो.’
सुमित्रा झटपट तैयार हो कर रसोई की ओर दौड़ी. पहले चाय बना कर घर के सब सदस्यों को पिलाई. फिर अपने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार किया. उन का नाश्ता पैक कर के दिया. उन्हें स्कूल की बस में चढ़ा कर लौटी तो थक कर निढाल हो गई थी.
अभी तक उस ने एक घूंट चाय तक न पी थी. सच पूछो तो उसे चाय पीने की आदत ही न थी. बचपन से ही वह दूध की शौकीन थी. उस के मायके में घर में गायभैंसें बंधी रहती थीं. दहीदूध की इफरात थी.
जब वह ब्याह कर ससुराल आई तो उस ने डरतेडरते अपनी सास से कहा था कि उसे चायकौफी की आदत नहीं है. उसे दूध पीना अच्छा लगता है.
सास ने मुंह बना कर कहा था, ‘‘दूध किसे अच्छा नहीं लगेगा भला. लेकिन शहरों में दूध खरीद कर पीना पड़ता है. यहां तुम्हारे ससुर की तनख्वाह में दूध वाले का बिल चुकाना भारी पड़ता है. बालबच्चों को दूध मिल जाए तो वही गनीमत समझो.’’
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