Family Story : एक डाक्टर होते हुए भी पत्नी को मौत के मुंह में जाते हुए देखते रह गए थे डाक्टर सुमित. कितने व्यथित थे वे लेकिन उन का बेटा मुदित शायद पापा का दुख समझ नहीं पा रहा था.
कौफी का मग सामने था. मग में पहले की तरह ही झाग के बुलबुले दिख रहे थे. एक घूंट भरा और मुंह कड़वा हो गया. डाक्टर सुमित ने मग नीचे रख दिया, ‘कैंटीन वाले रवि की कौफी पर भी असर हो रहा है,’ सोचते हुए डाक्टर सुमित के चेहरे पर एक खिन्न सी मुसकान आई और चली गई. असर सब ओर था. हर तरफ उदासी पंजे गाढ़ कर जमी थी. अभी 2 ही बजे थे, अगली शिफ्ट शुरू होने में एक घंटा था. इन दिनों सभी 2 शिफ्टों में काम कर रहे हैं, इन दिनों मरीज बढ़ने लगे हैं. डाक्टर सुमित ने आसपास नजर दौड़ाई, कैंटीन लगभग खाली थी. अधिकतर डाक्टर्स लंच के लिए चले गए होंगे.
कैंटीन में इस वक्त डाक्टर सुमित के अलावा चारपांच लोग ही थे. खांसी की आवाज सुन कर उन का ध्यान कोने की मेज पर चला गया, दसबारह साल का बच्चा मातापिता के साथ बैठा था. मां के हाथ में बिसकुट का पैकेट था, वह हाथ में बिसकुट ले कर बच्चे को खिला रही थी. मां के बारबार कहने पर बच्चे ने जरा सा बिसकुट कुतरा और फिर खांसने लगा. मां ने बच्चे की पीठ सहलानी शुरू कर दी. पिता ने फौरन बैग से फ्लास्क निकाला और मां को थमा दिया. मां ने फ्लास्क खोल कर पानी निकाला और बच्चे को अपने हाथ से पिलाने लगी.
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