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मातंगी बूआ ने घर में घुसते ही प्रश्नों की बौछार कर दी थी.

‘‘अरी अंबिका, यह मैं क्या सुन रही हूं, तू ने शादी करने का फैसला किया है? चलो, देरसवेर तु?ो सम?ा तो आई. बस, एक ही बात का अफसोस है कि तेरे पिता को यह दिन देखना बदा न था,’’ कह कर वे बैठक में पालथी मार कर बैठ गईं और बोलीं, ‘‘अब बता, लड़का कौन है, कैसा है? है तो अपनी ही जातबिरादरी का न?’’

‘‘नहीं बूआ,’’ अंबिका की छोटी बहन राधिका बोली, ‘‘महेन उत्तर भारत का रहने वाला है. उस के परिवार के लोग कई पुश्त पहले सिंगापुर में जा बसे थे.’’

‘‘ये लोग,’’ बूआ ने मुंह बनाया, ‘‘एक तो करेला उस पर नीम चढ़ा. क्यों अंबिका, तु?ो अपनी जात में कोई लड़का नहीं मिला जो इस सिंगापुरिया को जा पकड़ा. तेरा भी काम जग से निराला ही होता है. खैर, तू जाने तेरा काम. अब तू बच्ची तो रही नहीं कि कोई तु?ो उंगली पकड़ कर चलना सिखाए. फिर भी एक बात मैं जरूर कहूंगी कि लड़के के बारे में भलीभांति जांचपड़ताल कर लेना. ऐसा न हो कि आगे चल कर पछताना पड़े. लड़कों के बारे में पहले ही तू 2 बार धोखा खा चुकी है.’’

अंबिका का चेहरा मलीन हो गया. बूआ ने उस की दुखती रग पर हाथ जो धर दिया था.

क्या यह उस का अपराध था कि वह 2 बार शादी के लिए ठुकराई जा चुकी थी? उस ने उफनते मन से सोचा, ‘उस में क्या कमी थी, क्या वह सुंदर न थी, सुयोग्य न थी जो पहले प्रकाश फिर अविनाश, उसे ठुकरा कर चल दिए थे.’

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