सोनाली बियर का एक बड़ा घूंट ले कर बोली, ‘‘अनु दीदी, आप को किताबें मिली हैं, सहाय साहब झूठ नहीं लिखेंगे.’’
अनु खामोश रही. नीबूपानी का घूंट ले कर मुंह बंद रखा.
‘‘अनु दीदी, सहाय साहब के साहित्यिक चरित्रों में अकसर आत्महत्या की प्रवृत्ति दिखती थी या आत्मघाती मौत मिलती थी. उन में यौन पिपासा भी प्रबल दिखती थी, इस का क्या कारण रहा होगा?’’
‘‘सोनाली, तुम क्या सूचित करना चाहती हो?’’ अनु ने सीधा सवाल किया.
‘‘मैं ने अपने अंतरंग दोस्त को पहचाना था. अब आप की मदद से सत्य तक पहुंचना चाहती हूं.’’
‘‘हमारे नातोंरिश्तों में ऐसी मौत किसी की नहीं हुई.’’
‘‘दीदी, माफ करना. मुझे लगता है, आप ने अपने पति को समझा नहीं, उन की प्रतिभा को जाना नहीं.’’
‘‘क्या कहती हो? उन का संवेदनशील स्वभाव मुझ से ज्यादा कौन समझेगा?’’ अनु तेज स्वर में चिल्लाई. उस का मन हुआ कि उसे एक चांटा रसीद करे किंतु अत्याधुनिक होटल और लोग देख कर चुप रह गई. फिर बढ़ते रक्तचाप को संयत करने के लिए नीबूपानी का एक घूंट गले के नीचे उतार कर खड़ी हो गई.
सोनाली ने उसे बैठने का इशारा किया और कुटिल हास्य बिखेर कर आगे बोली, ‘‘घर की मुरगी दाल बराबर होती है. पति की कीमत जानने के लिए खास नजर चाहिए. जान निछावर करनी पड़ती है, केवल साथ रहना काफी नहीं.’’
खाना लजीज था किंतु बातों की कड़वाहट असहनीय थी. कुछ सोच कर अनु बोली, ‘‘सोनाली, तुम्हारे पति से मुझे मिलना है.’’
‘‘जरूर, अपने पति को सहाय साहब के बारे में मैं ने इतना बताया है कि...’’
‘‘उन दोनों की मुलाकात कभी हुई थी क्या?’’