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विशाल उसे सांत्वना दे ही रहा था कि विवेक ने प्रवेश किया, ‘‘मैं कान्फिडेंशल सेल से आया हं. यह कागजात, पिस्तौल और साइनाइट की टिकिया है. और हां, ये 2 टिकिट रोम के हैं. अंतिम जानकारी वहां दी जाएगी.’’

विवेक के जाने के बाद विशाल ने समझाया कि रोम तक वह भी चल सकती है तो अवंतिका मान गई.

हेमंत ने विवेक को अवंतिका के घर से निकलते देखा तो उसे कुछ शक हुआ और थोड़ी दूर पर विवेक को पकड़ कर बोला, ‘‘मैं प्रधानमंत्री के गुप्तचर विभाग से हूं. यह विशाल क्यों आंदोलनकर्ताओं से मिल रहा है? बताओ...वरना...’’ और हेमंत की घुड़की काम कर गई. विवेक ने पूरी कहानी उगल दी.

हवाई अड्डे से अब मुंशी दंपती निकल रहे थे तो विशाल और अवंतिका दिखाई दिए. विशाल ने अवंतिका को वहीं रुकने को कह कर मुंशी साहब का अभिनंदन किया, ‘‘साहब, श्रीमतीजी की मां मौत के मुंह में हैं, इसलिए जाना पड़ रहा है.’’

उधर हेमंत ने मौका मिलते ही अवंतिका को विशाल की झूठ पर आधारित पूरी योजना समझा दी. फिर क्या था, गुस्से से लाल होते हुए उस ने विशाल को परची लिखी, ‘‘माफ करना, मैं रोम नहीं जा सकती. आंदोलन में भाग लेना है. तुम चाहो तो साइनाइड की टिकिया खा सकते हो.’’

मुंशी दंपती और विवेक सभा भवन के पास पहुंच रहे थे कि देखा बिकनी पहने एक महिला घोड़े पर सवार है और विशाल उस से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है. हेमंत व पुलिस के 2 सिपाही उसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं. विशाल को जब तीनों ने दबोचा तो संवाददाताओं व फोटोग्राफरों ने अपनेअपने कार्य मुस्तैदी से किए.

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