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लगभग 30 वर्षों से साथ रहने वाली संविधा एक दिन अचानक पति का साथ और घर छोड़ने को तैयार हो गई. आखिर क्यों कर रही थी वह ऐसा?

संविधा ने घर में प्रवेश किया तो उस का दिल तेजी से धड़क रहा था. वह काफी तेजतेज चली थी,  इसलिए उस की सांसें भी काफी तेज चल रही थीं. दम फूल रहा था उस का. राजेश के घर आने का समय हो गया था, पर संयोग से वह अभी आया नहीं था. अच्छा ही हुआ, जो अभी नहीं आया था. शायद कहीं जाम में फंस गया होगा. घर पहुंच कर वह सीधे बाथरूम में गई. हाथपैर और मुंह धो कर बैडरूम में जा कर जल्दी से कपड़े बदले.

राजेश के आने का समय हो गया था, इसलिए रसोई में जा कर गैस धीमी कर के चाय का पानी चढ़ा दिया. चाय बनने में अभी समय था,  इसलिए वह बालकनी में आ कर खड़ी हो गई.

सामने सड़क पर भाग रही कारों और बसों के बीच से लोग सड़क पार कर रहे थे. बरसाती बादलों से घिरी शाम ने आकाश को चमकीले रंगों से सजा दिया था.

सामने गुलमोहर के पेड़ से एक चिडि़या उड़ी और ऊंचाई पर उड़ रहे पंछियों की कतार में शामिल हो गई. पंछियों के पंख थे, इसलिए वे असीम और अनंत आकाश में विचरण कर सकते थे.

वह सोचने लगी कि उन में मादाएं भी होंगी. उस के मन में एक सवाल उठा और उसी के साथ उस के चेहरे पर मुसकान नाच उठी, ‘अरे पागल, ये तो पक्षी हैं, इन में नर और मादा क्या? वह तो मानव है,  वह भी औरत.

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