सुचेता का विवाह हो गया. वह पिताजी को अकेला छोड़ आई. सुचेता अधीर हो रही थी, पर पिताजी की शिक्षाओं ने ही उसे धैर्य रखना सिखाया था.
सुचेता के पति अचल एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर थे और अच्छी सैलरी के चलते अच्छा लाइफस्टाइल था उन का.
प्रकृति स्त्रियों को सहज ही हर माहौल को स्वीकारने और उस में ढलने का स्वभाव देती है.
शादी के 2 साल बीत गए थे, पर इन 2 सालों में सुचेता एकलव्य को भूल नहीं पाई थी. भला धड़कन को ह्रदय से निकाल देने पर तो जो भी बचेगा, वह तो मृत ही होगा न. सुचेता भी धीरेधीरे ससुराल में खुश रहने का प्रयास कर रही थी. अचल भी सुचेता की हर बात का ध्यान रखते और समय मिलने पर ढेरों बातें करते और अचल की खुशी अपने चरम पर पहुंच गई थी, जब उसे ये पता चला कि सुचेता गर्भवती है.
“मै पढ़ाईलिखाई कर के भी सरकारी नौकरी नहीं पा सका, पर अपने होने वाले बच्चे को इस काबिल बनाऊंगा कि वह एक सरकारी नौकरी जरूर कर सके.”
सुचेता ने एक बेटी को जन्म दिया. अचल और उस के मातापिता ने नन्ही बिटिया का खुले मन से स्वागत किया और परिवार में ढेरों खुशियां छा गईं.
जीवन का कोई फिक्स्ड पैटर्न नहीं होता. वह तो चलता है समुद्र की लहरों की तरह, कभी ऊपर तो कभी नीचे, कभी शांत हो कर तो कभी शोर मचाता हुआ और एक ऐसा ही भयानक शोर सुचेता के जीवन में तब आया, जब अचल की रोड दुर्घटना में मौत हो गई.
सुचेता के लिए इस से अधिक दुख की बात क्या हो सकती थी. उस के सामने अभी पूरा जीवन पड़ा हुआ था और 6 साल की नन्ही बेटी की सारी जिम्मेदारी थी.