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रात में खाने की टेबल पर स्नेहा ने खुशी से उद्घोषणा की, ‘मां, कल मेरी पहली सैलरी आ जाएगी. सुगंधा और सुमेधा की सफलता की खुशी में हम एक शानदार पार्टी करेंगे.’ दोनों छोटी बहनों ने करतल ध्वनि से इस उद्घोषणा का स्वागत किया. पर मेरा चेहरा कुछ सोच कर लटक गया था.

‘आप यही सोच कर उदास हो रही हैं न मां कि जब हमारे अपने ही हमारी खुशियों में शरीक नहीं होंगे तो फिर ऐसे सैलिब्रेशन का क्या फायदा? आप चिंता मत कीजिए, मां. हम सब को निमंत्रित करेंगे. अब यह उन का निर्णय है कि वे हमारी खुशियों में सम्मिलित होते हैं या नहीं? वैसे, हम तीनों ने जो लिस्ट बनाई है उस में खुशीखुशी शामिल होने वाले हमारे शुभचिंतकों की संख्या उन नकारात्मक सोच वाले रिश्तेदारों से कहीं ज्यादा है. क्या हम उन सभी को निराश कर दें?’

‘नहींनहीं, तुम लोग जैसा ठीक समझो, करो.’ मैं आशंकित हृदय से ही सही पर उन के साथ तैयारियों में लग गई थी. सविता भाभी को सूचना मिली तो वे मिठाई का डब्बा लिए दौड़ी चली आई थीं.

‘मैं तो जाने कब से इस शुभ घड़ी की प्रतीक्षा कर रही थी. देखो बहना, अब तो स्नेहा अपने पांवों पर खड़ी हो गई है. क्या अब मैं उसे अपनी बहू बनाने का प्रस्ताव रख सकती हूं? आप निश्चिंत रहिए, उस की जिम्मेदारियां हमारी जिम्मेदारियां होगीं.’

आश्चर्य और खुशी के अतिरेक से मेरी बोलती बंद हो गई थी. झूठ नहीं कहूंगी, उन के सुशिक्षित सुपुत्र राहुल से जब भी मुलाकात होती थी जेहन में उसे अपना दामाद बनाने का खयाल बरबस आ ही जाता था. पर अपनी और उन की हैसियत का मुकाबला होंठों पर ताला लगा देता था. आज बिना मांगे ही मनचाही मुराद पूरी हो रही थी. सच है, मेहनत का फल अच्छा ही होता है. आननफानन सगाई के कार्ड छपवा कर सभी को निमंत्रण भेजे गए.

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