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पिताजी ने मां को पकड़ कर एक चौकी पर बैठा दिया. भक्तजन एकएक कर आते और मां को अपनी समस्या बताते और मां ज्वार के 1-2 या 5 दाने उन के हाथ पर रख देती और वे मां द्वारा बताए वाक्य दोहरा देते. ‘6 माह में आप की समस्या हल हो जाएगी या फिर रोज नहा कर देवीजी को पानी चढ़ाइए, समस्या दूर अथवा 3 माह तक बाल खोल कर 6 मुंह वाला दीया जलाइए. फिर देखिए परिणाम, माता की कृपा बरसेगी’ आदिआदि. इस के साथ ही, वे भक्त को हाथ में बांधने के लिए कलावा और सिर पर लगाने को भभूत भी देतीं. इस सब को पा कर भक्त इतना अभिभूत हो जाता कि उसे लगता कि उस की आधी समस्या तो मां के पास आनेभर से दूर हो गई है.

इन नौ दिनों में घर में साड़ी, रुपए, फल, मेवा आदि इतने आ जाते कि आगामी नवरात्र तक घर में किसी भी प्रकार की कोई कमी न रहती और इस प्रकार देवी मां की कृपा से घर की आर्थिक विपन्नता जाती रही और भगवन की कृपा से दोचार वर्ष में ही 2 कमरों का घर तीनमंजिला बन गया. घर के बाहरी हिस्से में भगवन का एक मंदिर बनवाया जहां पर रोज ही सुबहशाम पूजापाठ होता. साथ ही, प्रति गुरुवार और नवरात्र के नौ दिन तक मां सुरती देवी पर मां अम्बे की कृपा बरसती और उस कृपा से हम सब चैन की जिंदगी जी पाते. पंडितजी अपने पुराने दिनों में डूबते ही जा रहे थे कि पंडिताइन शाम की चाय ले कर आ गईं. पंडितजी उठ कर बैठे और बोले, ‘‘भोजन कर लिया था न पंडिताइन, हम ने तो इतना छक कर खाया कि बैठने तक का दम नहीं बचा था. बड़े दिनों बाद इतना स्वादिष्ठ भोजन मिला था,

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