आप बताइए, कब करवाना ठीक रहेगा?’’ पंडितजी एकदम बैड पर उचक कर उकड़ूं बैठ गए और उन के होंठों पर स्निग्ध मुसकान फैल गई. जिह्वा पर दसियों व्यंजनों का स्वाद छाने लगा. मन ही मन भगवान को धन्यवाद देते हुए उन्होंने स्वयं को संयत किया और सुमधुर स्वर में बोले, ‘‘नमस्कार भाभीजी, कैसी रही आप की यात्रा? यह तो बहुत बढि़या विचार है आप का.
किसी भी तीर्थ की पूर्ति तब तक नहीं होती जब तक कि सत्यनारायणजी की कथा न करवाई जाए, कब करवाना है, भाभीजी?’’ ‘‘इसीलिए तो आप को फोन किया है, आप बताइए कब का मुहूर्त ठीक रहेगा? वैसे हमें संकोच हो रहा था आप को फोन करते हुए क्योंकि आप की अभी 15 दिनों पहले ही शादी हुई है न पर हम ने सोचा, पहले आप से पूछ लें. यदि आप फ्री नहीं होंगे तो फिर दूसरे पंडितजी को बुलाएं.’’ ‘‘अरे नहींनहीं, भाभीजी. इस में संकोच की क्या बात है. शादीब्याह तो जीवन की एक प्रक्रिया है, सो, हो गई. बाकी आप को तो पता ही है, हम तो भगवान के भक्त हैं, भाभीजी.
मैं आप को आधे घंटे में फोन करता हूं पंचांग देख कर कि कब का शुभ मुहूर्त है.’’ पंडितजी ने जल्दी से बात समाप्त कर के फोन काट दिया और कमरे में खुश होते हुए इधरउधर चक्कर काटने लगे. चक्कर काटतेकाटते वे सोच रहे थे, हे प्रभु, तू कितना ध्यान रखता है अपने भक्तों का. इतने दिनों से बढि़या खाना और वीआईपी ट्रीटमैंट के लिए तरस गया था मैं. यों तो आजकल पंडिताइन खाना बनाती है पर एक तो वह नई है, दूसरे घर में कुछ भी बनाओ, खर्चा तो अपना ही होना है. यजमान तो जीभर कर खिलाते ही हैं, साथ ही, पंडिताइन के लिए बांध भी देते हैं. तभी उन्हें ध्यान आया कि अभी तो भाभीजी को फोन भी करना है. कहीं भाभीजी अपना मन बदल न दें.